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प्रधानमंत्री ने अहिंसा यात्रा संपन्नता समारोह कार्यक्रम को किया संबोधित

सारस न्यूज, वेब डेस्क।

‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की परंपरा का विस्तार करने और आध्यात्मिक संकल्प के रूप में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र का प्रचार-प्रसार करने के लिए तेरापंथ की प्रशंसा की

“किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं होने पर ही वास्तविक आत्म-साक्षात्कार संभव है”

“भारत की प्रवृत्ति, सरकार के माध्यम से सब कुछ करने की कभी भी नहीं रही है; यहाँ सरकार, समाज और आध्यात्मिक प्राधिकार की हमेशा समान भूमिका रही”

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज श्वेतांबर तेरापंथ के अहिंसा यात्रा संपन्नता समारोह कार्यक्रम को वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा दिए गए संदेश के माध्यम से संबोधित किया। शुरुआत में, प्रधानमंत्री ने भारतीय संतों की हजारों साल पुरानी परंपरा को याद किया, जो निरंतर गतिमान रहने पर जोर देती है। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि श्वेतांबर तेरापंथ ने आलस्य-त्याग को आध्यात्मिक संकल्प में परिणत कर दिया है। उन्होंने आचार्य महाश्रमण जी को तीन देशों में 18 हजार किलोमीटर की ‘पदयात्रा’ पूरी करने के लिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की परंपरा का विस्तार करने और आध्यात्मिक संकल्प के रूप में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र का प्रचार करने के लिए आचार्य की सराहना की। प्रधानमंत्री ने श्वेतांबर तेरापंथ के साथ लंबे समय तक जुड़े रहने को भी याद किया और अपने पहले के वक्तव्य को याद किया, “ये तेरा पंथ है, ये मेरा पंथ है” – यह तेरापंथ मेरा पथ है।

प्रधानमंत्री ने 2014 में लाल किले से शुरू हुई ‘पदयात्रा’ के महत्व को रेखांकित किया और इस संयोग के बारे में बताया कि उन्होंने स्वयं उसी वर्ष भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सार्वजनिक सेवा व जन कल्याण की नयी यात्रा शुरू की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने पदयात्रा की थीम – सद्भाव, नैतिकता और नशामुक्ति – की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार के व्यसन की अनुपस्थिति में ही वास्तविक आत्म-साक्षात्कार संभव है। व्यसन से मुक्ति के जरिये स्वयं का ब्रह्मांड के साथ विलय हो जाता है और इस प्रकार सभी का कल्याण होता है।प्रधानमंत्री ने कहा कि आज आजादी के अमृत महोत्सव के बीच देश, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का आह्वान कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश; सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की भावना के साथ आगे बढ़ रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की प्रवृत्ति कभी भी सरकार के माध्यम से सब कुछ करने की नहीं रही है और यहां सरकार, समाज तथा आध्यात्मिक प्राधिकार की हमेशा समान भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि देश अपने संकल्पों को पूरा करने की दिशा में कर्तव्य पथ पर चलते हुए इस भावना को प्रदर्शित कर रहा है।

अंत में, प्रधानमंत्री ने आध्यात्मिक संतों से देश के प्रयासों और संकल्पों को आगे बढ़ाते रहने का अनुरोध किया।

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