सारस न्यूज़ टीम, सारस न्यूज़।
बिहार विधानसभा में सोमवार को गजब नजारा देखने को मिला। एक खास मसले पर भाजपा और राजद के विधायक पूरी तरह एकजुट नजर आए। दोनों ही दलों ने अफसरशाही का आरोप लगाया और सरकार को आखिरकार एक बड़ी घोषणा करनी पड़ी। बिहार में कई अफसर विधायक और सांसद तक को भाव नहीं देते। विधायकों ने कहा कि उनके लिखे पत्रों का फलाफल मालूम नहीं होता व फोन पर भी नहीं मिलते। विधायकों की इस तरह की पीड़ा विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान खूब गूंजी। विधायकों के जोर और प्रस्ताव पर विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने सदन में यह घोषणा की कि इसके लिए विधानसभा में प्रोटोकाल कमेटी का गठन किया जाएगा।
प्रश्नकाल के दौरान रामबली सिंह यादव ने इस मसले को उठाया था। उनका कहना था कि अफसरों के लिए यह तय है कि उन्हें विधायकों के साथ लिखित तथा व्यावहारिक रूप से किस तरह के प्रोटोकाल के तहत पेश आना है। पर विधायकों के पत्रों का जबाव देने के लिए समय का निर्धारण प्रोटोकाल के दायरे में नहीं है। इस प्रश्न पर नीतीश मिश्रा ने अपनी बात यूं रखी कि उन्होंने 106 पत्र लिखे पर उसका जबाव नहीं मिला। इसकी जानकारी उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव को भी दी।
संजय सरावगी ने लिखे 100 पत्र:-
दरभंगा सदर के भाजपा विधायक संजय सरावगी ने कहा कि उन्होंने एक सौ पत्र लिखे पर उन पत्रों के आधार पर क्या कार्रवाई हुई उन्हें यह नहीं मालूम हो सका। राजद के आलोक मेहता का प्रस्ताव आया कि विधायक जो पत्र लिखते हैैं उसकी निगरानी के लिए सदन की कमेटी बने जो संयुक्त रूप से हो। विजय शंकर दूबे ने कहा कि प्रश्नों के उत्तर आते हैैं पर उसके फलाफल की जानकारी नहीं मिलती। ललित यादव ने भी सदन की कमेटी बनाए जाने की बात कही।
संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि अगर कोई अधिकारी नियमों का उल्लंघन करता है तो इसकी जानकारी दें। सरकार कार्रवाई करेगी। जिसकी जैसी गलती होगी वैसी सजा मिलेगी। मुख्य सचिव के स्तर पर पत्र लिखे जाते हैैं। नियम यह है कि पंद्रह दिनों के अंदर पत्र के पावती की सूचना देनी है। उसके अगले पंद्रह दिनों के अंदर कार्रवाई की सूचना देनी है। सरकार के अधिकारियों के लिए समय-समय पर इस बारे में सूचना जारी होती है।