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आरआरबी एनटीपीसी परीक्षा मामले में आइसा–इनौस ने 28 जनवरी को किया बिहार बंद का आह्वान।

Jan 26, 2022

संसू, सारस न्यूज़, किशनगंज।

छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) व  इंकलाबी नौजवान सभा (इनौस) ने आरआरबी एनटीपीसी की परीक्षा के रिजल्ट में धांधली तथा ग्रुप डी की परीक्षा के खिलाफ 28 जनवरी को बिहार बंद का आह्वान किया है। वहीं रेलवे प्रशासन की ओर से मामले में जांच कमेटी बनाने और ग्रुप डी की परीक्षा को स्थगित करने के दिए गए आश्वासन को झांसा बताया है।आइसा-इनौस नेताओं की मांग है कि रेल मंत्रालय सात लाख संशोधित रिजल्ट फिर से प्रकाशित करे। उन्होंने कहा कि यह समझ से परे है कि ग्रुप डी तक की नौकरियों के लिए दो परीक्षा क्यों होगी? इसमें भी अभ्यर्थियों की साफ मांग है कि पहले के नोटिफिकेशन के आधार पर केवल एक परीक्षा ली जाए और दूसरे नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए।

इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अगिआंव विधायक मनोज मंजिल, आइसा के महासचिव व विधायक संदीप सौरभ, इनौस के मानद राज्य अध्यक्ष व विधायक अजीत कुशवाहा, इनौस के राज्य अध्यक्ष आफताब आलम, आइसा के राज्य अध्यक्ष विकास यादव, इनौस के राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन व आइसा के राज्य सचिव सब्बीर कुमार ने बुधवार को फिर से संयुक्त प्रेस बयान जारी किया। कहा कि अभ्यर्थियों द्वारा उठाए जा रहे सवालों पर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है। चरम बेरोजगारी की मार झेल रहे छात्र-युवाओं का यह व्यापक आंदोलन ऐसे वक्त खड़ा हुआ है, जब यूपी में चुनाव है। इसी के दबाव में सरकार व रेलवे का यह प्रस्ताव आया है और चुनाव तक इस मामले को टालने की साजिश रची जा रही है, लेकिन विगत सात वर्षों से देश के युवा मोदी सरकार के छलावे को ही देखते आए हैं। यही वजह है कि उनका गुस्सा इस स्तर पर विस्फोटक हुआ है।उन्होंने कहा कि यदि सरकार सचमुच अभ्यर्थियों की मांगों पर गंभीर होती तो इतने बड़े मसले पर रेल मंत्री खुद सामने आकर अभ्यर्थियों से तत्काल बात करते। एक तरफ जांच कमिटी का झांसा है, तो दूसरी ओर बर्बर तरीके से हर जगह छात्र-युवाओं पर दमन अभियान भी चलाया जा रहा है। इससे सरकार की असली मंशा साफ-साफ जाहिर हो रही है। छात्र-युवा नेताओं ने पूछा कि स्नातक स्तरीय 35277 पदों के लिए हुई परीक्षा के पीटी रिजल्ट को लेकर उठाए जा रहे सवाल को समझने में रेलवे प्रशसन को क्या दिक्कत है, जो वह जांच कमेटी का झुनझुना थमा रही है। कोई एक अभ्यर्थी एक से अधिक पदों पर सफल हो सकता है, लेकिन वह एक अभ्यर्थी ही है और इसलिए उसकी गिनती एक व्यक्ति के बतौर ही होनी चाहिए न कि अनेक। इस तरह सात लाख अभ्यर्थियों की जगह सही अर्थों में महज दो लाख 76 हजार अभ्यर्थियों को ही चयनित किया जा रहा है। चार लाख 24 हजार अभ्यर्थियों यानी दो तिहाई को रोजगार के मौके से ही बाहर कर दिया जा रहा है। 

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