सारस न्यूज टीम, पटना।
उच्च न्यायालय पटना ने विभागीय कार्रवाई संचालन में उदासीन एवं गैर जिम्मेदाराना रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए स्वास्थ्य विभाग पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायाधीश बजनथ्री की एकलपीठ ने मंगलवार को डा. अरुण कुमार तिवारी की याचिका को स्वीकृति देते हुए जुर्माना लगाया और जुर्माना राशि एक महीने में विधिक सेवा प्राधिकार में जमा करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर हैरानी जताई कि जुलाई 2002 में जिस विभागीय कार्रवाई शुरू की, उसमें आरोपित कर्मी को आरोप पत्र की कॉपी तक नहीं सौंपी थी। जब याचिकाकर्ता पहली बार कोर्ट में आया तो कोर्ट ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी को निरस्त करते हुए स्वास्थ्य विभाग को 2011 में फिर से कार्रवाई संचालन का आदेश दिया था। क्षोभजनक यह कि कोर्ट के आदेश के आलोक में जो कार्रवाई शुरू की गई उसमें भी याचिकाकर्ता को आरोप पत्र और साक्ष्यों की सूची से वंचित रखा गया। अनुशासनात्मक अधिकारी ने विभागीय जांच रिपोर्ट तक याचिकाकर्ता को नहीं सौंपी, ताकि वह अपना बचाव न कर सके। कोर्ट के आदेश के बावजूद विभाग ने याचिकाकर्ता को 2015 में दोबारा बर्खास्त कर दिया। उसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने अपील दायर की, जो एक साल तक लंबित पड़ी रही। आखिरकार याचिकाकर्ता को दोबारा हाई कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। कोर्ट का आदेश होने के बाद भी अपीलीय प्राधिकार ने कोई निर्णय नहीं लिया तब याचिकाकर्ता ने अवमानना का मामला दायर किया। अवमानना के डर से अपीलीय प्राधिकार ने आनन-फानन में अपील को 2018 में खारिज कर दिया। तब याचिकाकर्ता को फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के पिछले आदेश में सरकार से जिन जरूरी तथ्यों के बारे में पूछा उसका कोई सटीक जवाब नहीं मिला। तब स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव तलब हुए। मंगलवार को प्रभारी प्रधान सचिव कोर्ट में हाजिर हुए। कोर्ट ने लंबे आदेश में उपरोक्त तथ्यों को उजागर करते हुए सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत पर 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी को निरस्त करते हुए उसके वेतन-भत्ते व बकाए सहित सभी सेवांत लाभ देने का भी निर्देश दिया है।