सारस न्यूज टीम बिहार।
सहायक प्रशासनिक अधिकारी सतीश कुमार ने लगाई गोपालगंज और मुजफ्फरपुर में चपत अभी कानपुर की एमजी रोड शाखा में तैनात दो दर्जन से अधिक कर्मियों की फंसी गर्दन सहकर्मियों के इंप्लाय कोड का दुरुपयोग कर बीमाकर्ताओं की राशि की हुई हेराफेरी
भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में बीमा दावा भुगतान की आड़ में करोड़ों रुपये की हेराफेरी हुई है। मामला कई शाखाओं से जुड़ा है। पहले चरण में तीन शाखा तक जांच की आंच पहुंची है। सर्वाधिक हेराफेरी एलआइसी की गोपालगंज शाखा में हुई है। उसके साथ जांच के दायरे में मुजफ्फरपुर और कानपुर की शाखाएं भी हैं। आंतरिक जांच में अभी तक तीन करोड़ से अधिक के भुगतान में हेराफेरी का मामला उजागर हुआ है। अब मामला सीबीआइ (केंद्रीय जांच ब्यूरो) को सौंपने की तैयारी है। हेराफेरी करने वाला सहायक प्रशासनिक अधिकारी सतीश कुमार वर्तमान में कानपुर में एमजी रोड शाखा में कार्यरत है।
सतीश ने कई सहयोगियों के इंप्लाय कोड का गलत इस्तेमाल कर राशि का भुगतान टेंट हाउस संचालकों के खाते में कर दिया। इसके अलावा उसके द्वारा कई महिलाओं के बैंक खातों में राशि के भुगतान की भी पुष्टि हुई है। सतीश ने बीमा दावा भुगतान गोपालगंज जिला के बीमाधारक के नामनी या उत्तराधिकारी के खाते में करने के बाद दूसरी बार मुजफ्फरपुर जिला में तुर्की, करजा, सरैया और पोखरैरा के विभिन्न बैंक खातों में किया है। इसी तरह वैशाली जिला में लालगंज के अलावा कई बैंक शाखाओं में विभिन्न लोगों के खाते दो से पांच लाख रुपये तक का भुगतान कर दिया। इस प्रकरण में एलआइसी के मंडल प्रबंधक सुशांत पानीग्राही से मोबाइल नंबर, वाट्स-एप नंबर और संदेश के माध्यम से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
कैसे सामने आया मामला
बीमा धारकों के कई नामिनी के खाते में जब अरसे तक राशि नहीं पहुंची तो वे शिकायत करने एलआइसी के मंडल कार्यालय पहुंचे। बड़ी हेराफेरी की आशंका देखते हुए मंडल कार्यालय ने क्षेत्रीय कार्यालय को जांच की सिफारिश कर दी। क्षेत्रीय कार्यालय की जांच में परत-दर-परत घोटाला उजागर हुआ है। अब चर्चा है कि इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने के लिए एलआइसी के मुंबई स्थित मुख्यालय से लिखित आग्रह किया गया है।
बीमा दावा के लिए देना होता है प्रमाण
बीमा दावा भुगतान प्राप्त करने के लिए मैच्युरिटी बांड के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र, एफआइआर की कापी और पुलिस की फाइनल रिपोर्ट जमा करनी होती है। इसी आधार पर बीमा दावा का भुगतान किया जाता है।