बीरबल महतो, सारस न्यूज़, किशनगंज।
कटिहार जिले का बरारी प्रखंड ऐतिहासिक रुप से काफी चर्चित रहा है। गुरुनानक देव, गुरु तेग बहादुर व शेरशाह सूरी द्वारा काढ़ागोला घाट के रास्ते ही असम व बंगाल की यात्रा की गयी थी। उसके बावजूद भी यह गंगा घाट ऐतिहासिक रहते हुए भी आज उपेक्षित है। काढ़ागोला घाट और पिरपैतीं के बीच गंगा नदी पर पुल निर्माण की मांग काफी अर्सों से उठ रही है। यहां पुल निर्माण हो जाने से यह ऐतिहासिक क्षेत्र फिर से जीवित हो उठेगा। पुल बनने से आसाम से झारखंड, बंगाल तक की दूरी कम हो जायेगी। वही भागलपुर स्थित विक्रमशिला पुल पर वाहनों का बोझ भी कम हो जायेगा। इस घाट पर माघी पूर्णिमा में मेला लगता था। जिसमें कोलकाता, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना से पानीवाले जहाज से दुकानदार यहां आते थे। 1540 ईसवी में मुगल बादशाह हुमायूं को पराजित कर शेर खां भारतवर्ष के शासक हुए। उन्होंने गंगा के किनारे से दार्जिलिग तक पक्की सड़क का निर्माण किया था। जिसे गंगा-दार्जिलिग पथ कहा जाता है । 1666 ईसवी में जब सिक्खों के नवें गुरु तेग बहादुर असम के दौरे पर निकले थे। तो पटना से जलमार्ग द्वारा बरारी प्रखंड के कांतनगर पहुंचे. भवानीपुर, भंडारतल, कांतनगर में गुरू नानक देव के शिष्य हैं और यहां सिख समुदाय का अच्छा खासा परिवार रहता है। इसके बावजूद यह उपेक्षित है। एक बार पुन: काढ़ागोला गंगा घाट पर पुल निर्माण को लेकर आवाज उठने लगी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घाट सबसे पुराना गंगा घाट है। जहां एक समय बड़े बड़े पानी के जहाज चलते थे। असम-बंगाल जाने का यह रास्ता था। इस घाट पर पुल बनना चाहिए जिससे क्षेत्र का विकास होगा। बरारी प्रखंड गुरुओं की नगरी रही है। काढ़ागोला घाट ऐतिहासिक महत्व से तब ही जुड़ सकता है जब पुल बन जाने से झारखंड से सीधे जुट जायेगा और रांची तक की दूरी कम हो जायेगी। वहीं स्थानीय विधायक विजय सिंह ने कहा कि काढ़ागोला घाट पर पुल बने, इसके लिए मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन सौंपा गया है। इसके लिए वे प्रयत्नशील हैं।