शशि कोशी रोक्का, सारस न्यूज़ टीम।
किशनगंज जिले के क्षेत्रों में महापर्व छठ की शुरुआत मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गई है। व्रत और उपवास के साथ कार्तिकी छठ पूजा आगामी शुक्रवार तक चलेगी। छठ महापर्व के दूसरे दिन छठव्रती महिलाएं एवं पुरुष पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद खरना पूजा करते हैं। इसके बाद दूध और गुड़ से बनी खीर एक बार खाई जाती है, जिसके बाद लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।
छठ पूजा में साफ-सफाई का विशेष महत्व है। परिवार की सुख-समृद्धि और कष्टों के निवारण के लिए किए जाने वाले इस व्रत की खासियत यह भी है कि इसे करने के लिए किसी पुरोहित की आवश्यकता नहीं होती। घर-आंगन को गाय के गोबर से लीप कर शुद्ध किया जाता है, फिर ठेकुआ, बताशा के साथ अन्य पकवान बनाए जाते हैं। लोक आस्था के इस महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करते हैं और चौथे दिन उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देकर पूजा को संपूर्ण करते हैं। इस तरह उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत समाप्त होता है और वे अन्न ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा का आरंभ बिहार के मुंगेर जिले में माता सीता द्वारा किए जाने की धार्मिक मान्यता है। मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सबसे पहले मुंगेर के गंगा तट पर छठ पूजन किया था। मुंगेर का छठ पर्व में विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब माता सीता श्रीराम के साथ वनवास में थीं, तब उन्होंने मुंगेर के गंगा तट पर छठ पूजा की थी। इस स्थान पर माता सीता के चरण चिन्ह आज भी देखे जा रहे हैं, जिसे राम-सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि रामायण और आनंद रामायण में भी इसका उल्लेख मिलता है।
मुंगेर गजेटियर के अनुसार, गंगा के बीच स्थित एक शिलाखंड पर माता सीता और भगवान राम के चरणों के निशान हैं। 1926 में प्रकाशित मुंगेर गजेटियर में इस पत्थर पर दो चरणों के निशान का उल्लेख मिलता है, जिन्हें माता सीता के चरण मानते हैं।