सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
पूर्वी बिहार के एक प्रमुख सरकारी अस्पताल से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां स्टाफ नर्स ने बिना काम किए वर्षों तक वेतन और भत्ते उठाए। जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इस घटना ने पूरे स्वास्थ्य महकमे को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
पैथोलॉजी विभाग, अधीक्षक कार्यालय और मेट्रन कार्यालय के कर्मचारियों की मिलीभगत से स्टाफ नर्स प्रतिमा कुमारी-6 तीन साल तक नौकरी पर हाज़िर हुए बिना सरकारी खजाने से करीब 28 लाख रुपये वेतन और इंक्रीमेंट के रूप में लेती रहीं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस अवधि में उन्होंने 37 बार उपार्जित अवकाश (ईएल) का आवेदन किया, जो कि सरकारी नियमों के अनुसार साल में अधिकतम 31 ईएल की सीमा से कहीं अधिक है। हर बार आवेदन मेट्रन कार्यालय से मंजूर भी करवा लिया गया।
बायोमीट्रिक सिस्टम भी हुआ बेअसर
नियम के अनुसार, नर्सों की उपस्थिति पहले बायोमीट्रिक सिस्टम में और फिर विभागीय उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज होती है। लेकिन इस मामले में दोनों प्रक्रियाएं केवल औपचारिकता बनकर रह गईं। प्रतिमा की फर्जी हाजिरी बना कर वेतन निकासी की जाती रही और अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं।
अधीक्षक ने मंगाया जवाब, जांच जारी
मौजूदा अधीक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा ने संबंधित लिपिकों से स्पष्टीकरण मांगा है और मामले की गहराई से जांच का आश्वासन दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि नियमों के अनुसार वेतन स्वीकृति से पहले कम-से-कम तीन स्तरों पर जांच होनी चाहिए थी, जो इस मामले में नहीं हुई।
पूर्व अधीक्षकों की भूमिका भी संदिग्ध
इस घोटाले की जाँच की आंच अब अस्पताल के पूर्व अधीक्षक डॉ. उदय नारायण सिंह और डॉ. राकेश कुमार तक पहुंच चुकी है। प्रतिमा की लगातार अनुपस्थिति और फिर भी सेवा लाभ देने जैसे फैसले इन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं।
सवालों के घेरे में पूरा सिस्टम
- प्रतिमा के स्थान पर उपस्थिति रजिस्टर में हाजिरी किसने भरी?
- क्या मेट्रन कार्यालय ने बार-बार छुट्टी की सूचना अधीक्षक को दी?
- क्या छुट्टियों का रिकॉर्ड सही से रखा गया?
- तीन साल में किसी ने संज्ञान क्यों नहीं लिया?
डॉ. शर्मा के अनुसार मामले की उच्च स्तरीय जांच टीम गठित कर दी गई है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई तय है।