सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
हांगकांग के न्यू टेरिटरीज़ स्थित ताई पो ज़िले में बने वांग फुक कोर्ट हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में बुधवार को लगी भीषण आग ने पूरे शहर को दहला दिया। अचानक भड़की आग कुछ ही देर में परिसर की कई ऊंची इमारतों तक पहुंच गई, जिससे इलाके में भगदड़ और अफरा–तफरी का माहौल बन गया। अब तक 44 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि करीब 279 लोग लापता बताए जा रहे हैं और सैकड़ों निवासी बेघर हो गए हैं।
आग लगते ही दमकल विभाग ने बड़े स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। घना धुआं और तेज लपटों के बीच सैकड़ों लोग अपने फ्लैटों में फंस गए, जिन्हें खिड़कियों, बालकनी और सीढ़ियों के ज़रिए बाहर निकाला गया। सैकड़ों निवासियों को नज़दीकी सामुदायिक केंद्रों और अस्थायी आश्रयों में शिफ्ट किया गया, जहां उन्हें बुनियादी सुविधा और राहत सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। कई गंभीर रूप से झुलसे और धुएं से प्रभावित लोगों का अलग–अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है।
वांग फुक कोर्ट में कुल आठ टावर हैं, जिनमें लगभग दो हज़ार फ्लैट और करीब 4,800 लोग रहते थे। यह कॉम्प्लेक्स 1980 के दशक में तैयार किया गया था और हाल के महीनों में यहां बड़े स्तर पर रिनोवेशन और रिपेयरिंग का काम चल रहा था। बताया जा रहा है कि आग की शुरुआत वहीं से हुई, जहां इमारतों के चारों ओर मरम्मत कार्य के लिए बांस की स्कैफोल्डिंग और हरी नेटिंग लगाई गई थी। सूखा बांस, प्लास्टिक कवरिंग और तेज हवा ने लपटों को पलक झपकते ही एक टावर से दूसरे टावर तक पहुंचा दिया और पूरा इलाका चंद मिनटों में आग के समंदर में बदल गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि बांस की मचान हांगकांग की पारंपरिक पहचान तो है, लेकिन आधुनिक शहरी परिदृश्य में यह बड़ा जोखिम भी बन चुकी है। हल्का और सस्ता होने के कारण इसे सालों से प्राथमिकता दी जाती रही, मगर यह बहुत जल्दी सुलग जाता है और ऊंची इमारतों पर लगी होने के कारण आग को ऊपर और दूर तक पहुंचा देता है। यही वजह है कि अब यह पुरानी तकनीक सीधे आम लोगों की सुरक्षा से टकराती दिख रही है। स्थानीय प्रशासन और डेवलपमेंट से जुड़े विभाग पहले से ही बांस की जगह स्टील और मेटल स्कैफोल्डिंग अपनाने की दिशा में काम कर रहे थे, और माना जा रहा है कि इस हादसे के बाद इस बदलाव की प्रक्रिया और तेज की जाएगी।
हांगकांग में बड़े अग्निकांडों का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन विशेषज्ञ इस त्रासदी को पिछले कई दशकों की सबसे भयावह घटना मान रहे हैं। इससे पहले भी 1960 और 2000 के दशक में बड़े फायर हादसों में भारी जनहानि दर्ज की गई थी, मगर इस बार जिस तरह कई ऊंची रिहायशी इमारतें एक साथ आग की चपेट में आई हैं, उसने आग सुरक्षा मानकों, निर्माण सामग्री और शहरी प्लानिंग पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं और पीड़ित परिवारों के पुनर्वास, मुआवज़े व जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
