Saaras News - सारस न्यूज़ - चुन - चुन के हर खबर, ताकि आप न रहें बेखबर

बी-टेक कोर्स अब हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ गुजराती, मलयालम, बंगाली, असमी, पंजाबी और उड़िया में भी

Jul 22, 2021

राजीव कुमार, सारस न्यूज़

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा उठाए गए कदम की सराहना की। उन्होंने अधिक से अधिक शैक्षणिक संस्थानों, विशेष रूप से तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों से ऐसा ही कदम उठाने का अनुरोध किया।

उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना छात्रों के लिए एक वरदान के रूप में काम करेगा। अपनी तीव्र इच्छा जाहिर करते हुए श्री नायडू ने कहा कि मेरी इच्छा वह दिन देखने की है जब सभी इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानून जैसे व्यावसायिक और पेशेवर पाठ्यक्रम मातृ भाषा में पढ़ाए जाएंगे।

कल (21 जुलाई को) 11 भारतीय भाषाओं में पोस्ट किए गए ‘मातृभाषा में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम – सही दिशा में उठाया गया कदम है शीर्षक वाले एक फेसबुक पोस्ट में उपराष्ट्रपति ने 11 मूल भाषाओं- हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ गुजराती, मलयालम, बंगाली, असमी, पंजाबी और उड़िया में बी-टेक कोर्स आयोजित करने की अनुमति देने के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के निर्णय के बारे में प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा नए शैक्षणिक वर्ष से क्षेत्रीय भाषाओं में चुनिंदा शाखाओं में पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने के निर्णय का भी स्वागत किया। उन्होंने कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है।

मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने के लाभों का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे समझ और ग्रहण करने का स्तर बढ़ता है। उन्होंने कहा कि किसी विषय को दूसरी भाषा में समझने से पहले उस भाषा को सीखना और उसमें निपुणता हासिल करनी पड़ती है, जिसमें काफी मेहनत की जरूरत होती है लेकिन उसी विषय को मातृभाषा में सीखने के दौरान ऐसा नहीं होता है।

देश की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का घर है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी भाषाई विविधता हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की मजबूत आधारशिला है। मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि हमारी मातृभाषा या हमारी मूल भाषा हमारे लिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि इसके साथ हम गहरे भावनात्मक संबंधों को साझा करते हैं।

श्री नायडू ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया में हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि भारत में 196 भारतीय भाषाएं संकट में हैं। उन्होंने कहा कि हमारी मूल भाषाओं के संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने और मातृभाषा में शिक्षण ग्रहण करने को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने लोगों से अधिक से अधिक भाषाएं सीखने का भी अनुरोध किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न भाषाओं में प्रवीणता आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में एक बढ़त प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि सीखने वाली हर भाषा के साथ हम दूसरी संस्कृति के साथ अपने संबंधों को घनिष्ठ बनाते हैं।

भाषाओं के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति कम से कम 5वीं कक्षा तक और वांछनीय रूप से 8वीं और उसके बाद तक मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा/घर की भाषा में शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। उन्होंने कहा कि विश्व में किए गए अनेक अध्ययनों ने यह स्थापित किया है कि शिक्षा के शुरुआती चरणों में मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे का आत्म-सम्मान बढ़ता है और उसकी रचनात्मकता में भी बढ़ोतरी होती है।

श्री नायडू ने भाषाओं के प्रलेखन और संग्रहण के लिए शिक्षा मंत्रालय के तहत लुप्तप्रायः भाषाओं (एसपीपीईएल) की सुरक्षा और संरक्षण की योजना की भी सराहना की। क्योंकि अनेक भाषाएं लुप्तप्रायः हो गई हैं या निकट भविष्य में इनके लुप्तप्रायः होने की संभावना है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार अकेले ही वांछित परिवर्तन नहीं ला सकती है। उन्होंने कहा कि हमारी आगामी पीढ़ियों के लिए जुड़ाव के इस धागे को मजबूत बनाने के लिए हमारी खूबसूरत भाषाओं के संरक्षण के लिए जन भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। अपनी मातृभाषा में बातचीत करने में लोगों में व्याप्त झिझक को देखते हुए उन्होंने लोगों से न केवल घर में बल्कि जहां भी संभव हो अपनी मातृभाषा में बोलने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि भाषाएं तभी फलती-फूलती हैं और जीवित रहती हैं जब उनका व्यापक रूप उपयोग किया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

error: Content is protected !!