सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री को डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना कानूनन अपराध है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऐसी सामग्री को मिटाने में विफल रहता है या पुलिस को इसकी सूचना नहीं देता, तो यह पॉक्सो एक्ट की धारा 15 के तहत अपराध माना जाएगा।
इस निर्णय ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया, जिसने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि व्यक्ति ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी केवल डाउनलोड की थी और इसे किसी अन्य को नहीं भेजा था।
POCSO एक्ट में संशोधन का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह POCSO एक्ट में संशोधन कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह “child sexually abusive and exploitative material (CSAEM)” शब्द का उपयोग करे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने 200 पन्नों के फैसले में यह सुझाव दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि जब तक संसद से इस संशोधन को मंजूरी नहीं मिलती, तब तक एक अध्यादेश लाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को भी सलाह दी कि वे अपने आदेशों में CSAEM का उपयोग करें।
पॉक्सो एक्ट की धारा 15
पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) एक्ट की धारा 15 की उपधारा 1 बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री को अपराध मानती है। इसमें 5,000 रुपए के जुर्माने से लेकर 3 साल तक की सजा का प्रावधान है। जबकि उपधारा 2 और 3 में ऐसी सामग्री के प्रसारण और व्यापारिक उपयोग को अपराध बताया गया है।
मद्रास हाई कोर्ट ने उपधारा 2 और 3 के आधार पर आरोपी को राहत दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उपधारा 1 अपने आप में पर्याप्त है।