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किशनगंज जिले के किसानों ने चाय की खेती में अपने बलबूते बनाई है पहचान, इसमें सरकार का नहीं रहा है कोई योगदान: पूर्व विधायक गोपाल कुमार अग्रवाल

शशि कोशी रोक्का, सारस न्यूज, किशनगंज।

किशनगंज जिले के अब्दुल कलाम कृषि महाविद्यालय में आयोजित बिहार की चाय पर चर्चा कार्यक्रम में ठाकुरगंज के पूर्व विधायक गोपाल कुमार अग्रवाल भी शामिल हुए।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि पिछले दो दशक से किशनगंज जिले में चाय की खेती हो रही है। यहां छोटे से लेकर बड़े किसान तक एक बीघा से लेकर 2 बीघा में भी कर रहे हैं चाय की खेती क्योंकि बंगाल के जो बॉर्डर इलाके हैं वहां सैकड़ों चाय की फैक्ट्री है तो दूसरे खेती के वनस्पति इसमें लोगों को ज्यादा लाभ भी दिख रहा और मेहनत भी कम दिख रहा है और यह प्रमानेंट खेती है। 2005 में मैंने विधानसभा में इस बात को कई बार उठाया भी चाय नीति के लिए 2005 से ही लड़ रहा हूं कि बिहार सरकार चाय नीति बनाए कई बार बैठक के भी हुई मुख्यमंत्री के आवास पर बैठक हुई थी उसमें एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट को कोई आपत्ति नहीं थी। उनकी सहमति थी। उद्योग विभाग की भी पॉजिटिव सहमति थी, लेकिन थोड़ी राजस्व विभाग को आपत्ति थी क्योंकि बंजर भूमि जो बिहार सरकार कि भूदान की जो लगभग चाय बागान में किसी तरह आ गई जिसको लेकर काफी बड़ा आंदोलन चल रहा था। एससी/एसटी समाज का तो उसको लेकर जो मामला है फस गया फिर विधि विभाग ने उसमें अर्चन लगा दिया।

गोपाल कुमार अग्रवाल ने कहा कि सरकार अगर सही ढंग से किशनगंज जिले की चाय किसानों को चाय नीति को अगर सही ढंग से लागू कर दे तो आज भी हम जो हैं बंगाल से आगे बढ़कर पूरे भारतवर्ष में एक अलग पहचान बना सकते हैं। हालांकि अभी जो पहचान बनी है किशनगंज जिले की वह यहां के किसानों ने अपने बलबूते बनाई है। इसमें सरकार का कोई योगदान नहीं रहा है, लेकिन अगर इसमें सरकार की योगदान हो जाए तो हमारी गति बढ़ जाएगी। गति बढ़ने से निसंदेह चाय की क्वालिटी टी बोर्ड ने भी माना है कि जो बंगाल की चाय है दाऊथ एरिया की जो चाय है उससे भी किशनगंज जिले की चाय की क्वालिटी अच्छी है।

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