शशि कोशी रोक्का, सारस न्यूज़, किशनगंज।
जिले में मातृ शिशु स्वास्थ्य को बेहतर एवं गुणवत्ता पूर्ण बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। मातृ एवं शिशु मृत्यु की सर्विलांस एवं रिपोर्टिंग को मजबूत करने के उद्देश्य से सिविल सर्जन कार्यालय स्थित सभागार में बुधवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण में मातृ-शिशु मृत्यु दर से संबंधित मामलों पर गहन चर्चा की गयी। सिविल सर्जन डॉ सुरेश प्रसाद ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में बताया कि बिहार में मातृ मृत्यु के अनुपात में काफी कमी आयी है। वर्ष 2004-06 में बिहार का मातृ मृत्यु अनुपात 312 से कम होकर 2020-21 में 149 (एसआरएस)-2016-18 अनुसार) हो गया है। यह गिरावट लगभग 52% है। प्रत्येक वर्ष एक लाख जीवित बच्चों के अनुपात में 149 माताओं की मृत्यु केवल बिहार में होती है। जो कि लगभग 4779 है। प्रत्येक गर्भवती माता का सुरक्षित प्रसव कराकर एवं प्रसव पश्चात देखभाल सुनिश्चित करके एमएमआर के अनुपात को 70 प्रति एक लाख जीवित बच्चों से नीचे ले जाना 2030 तक लक्ष्य है। इसके लिए विभाग के द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। जैसे एएनसी, पीएनसी, सुमन, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान शामिल हैं। 20 प्रतिशत मामलों में मातृ मृत्यु गर्भावस्था के दौरान हो जाती है, जबकि पांच प्रतिशत डिलीवरी के दौरान, 50 प्रतिशत डिलीवरी के 24 घंटे के अंदर, 20 प्रतिशत मौत डिलीवरी के सात दिन के अंदर और पांच प्रतिशत डिलीवरी के दूसरे से छठे सप्ताह के दौरान।
जागरूकता से ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
कार्यक्रम में मौजूद निजी चिकित्सकों ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने को लेकर काउंसिलिंग की बात कही। मौके पर डॉ. देवेन्द्र , डॉ.आशिया नूरी , केयर इंडिया के डीटीओ प्रशान्जित विश्वास, डीपीएम डॉ. मुनाजिम मौजूद थे।
मातृ मृत्यु के मुख्य कारण:
• परिवार के द्वारा समय पर निर्णय नहीं लेना
• अस्पताल ले जाने में देरी
• एंबुलेंस और ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं होना
• जागरूकता की कमी
• अस्पताल में समय पर इलाज नहीं मिलना
• प्रसव पूर्व तैयारी नहीं होना