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- जिले के अतिगंभीर कुपोषित बच्चों को उपचार कराने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण
गरीब परिवारों में आहार में विविधता की कमी का कारण गुणवत्तापूर्णखाद्य पदार्थों को खरीदने और उनका उपभोग करने में सक्षम न होने की कठिनाई हो सकती है। जबकि, शिक्षित एवं आर्थिक रूप से समृद्ध परिवारों में इस कमी का कारण जागरूकता के अभाव को दर्शाता है। केवल मां या अभिभावकों की शिक्षा का स्तर ही बच्चों को पौष्टिक भोजन खिलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। कुपोषण की स्थिति को देखते हुए व्यापक रूप से जागरूकता अभियान चलाकर आहार और पोषक तत्वों से संबंधित सटीक जानकारी देना अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है। वही जन्म के बाद बहुत से बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर पाए जाते हैं जिसे चिकित्सकीय भाषा में कुपोषित बच्चों की श्रेणी में आंका जाता है। ऐसे बच्चों को सही समय पर आवश्यक इलाज के साथ सही पोषण दिए जाने से सुपोषित किया जा सकता है। जिले में ऐसे बच्चों को चिह्नित कर उसके परिजनों को पोषण के प्रति जागरूक करने और कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र भेजने के लिए जिले के सभी प्रखंडों के स्वास्थ्य अधिकारियों को जिला स्वास्थ्य समिति के प्रांगण में सोमवार को एकदिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में सभी स्वास्थ्य अधिकारियों को अपने क्षेत्र के सभी कुपोषित बच्चों की पहचान करने की जानकारी दी गई। जिससे कि उसे समय पर आवश्यक इलाज के लिए जिला पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा जा सके।
पोषण पुनर्वास केंद्र में उपलब्ध हैं सभी आवश्यक सुविधा : सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ. कौशल किशोर ने अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के लिए जिला मुख्यालय स्थित राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) अच्छी तरह संचालित है। यहां कुपोषित बच्चों को आवश्यक इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। प्रखंड स्तर पर कुपोषित बच्चों के चिह्नित नहीं होने से एनआरसी में बच्चों की उपस्थिति कम दर्ज होती है। सभी स्वास्थ्य अधिकारियों को अपने क्षेत्र के लोगों के बीच इसके प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है । साथ ही क्षेत्र में पाए जा रहे कुपोषित बच्चों को एनआरसी भेजने की जरूरत है जिससे कि उसका पर्याप्त इलाज किया जा सके।
अति गंभीर कुपोषित बच्चों को एनआरसी में किया जाता है मुफ्त इलाज :
जिला योजना समन्वयक विश्वजीत कुमार ने कहा कि गर्भावस्था में महिलाओं के सही पोषण नहीं लेने के कारण कुपोषित बच्चों का जन्म होता है। इसे दो श्रेणी में विभाजित किया जाता है- कुपोषित बच्चे एवं अति गंभीर कुपोषित बच्चे। कुपोषित बच्चों को सामान्य रूप से आवश्यक पोषण देकर सुपोषित किया जा सकता है लेकिन अति गंभीर कुपोषित बच्चों को नियत समय पर इलाज की जरूरत होती है। सामान्य बच्चों की तुलना में अति गंभीर कुपोषित बच्चों की मृत्यु की संभावना अधिक होती है। इसलिए ऐसे बच्चों को समय से चिह्नित कर उसे पोषण पुनर्वास केंद्र भेजना आवश्यक है। जिससे कि उसका पर्याप्त इलाज हो और उसे सुपोषित किया जा सके।
अति गंभीर कुपोषित बच्चों की बीमारियों की पहचान जरूरी :
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ मुनाजिम ने बताया कि अति गंभीर कुपोषित बच्चों की बीमारियों की समय से पहचान करना जरूरी है। ऐसे बच्चों में किसी तरह के आपातकालीन लक्षण जैसे कि कोमा, बेहोशी या झटके आने जैसे संकेत मिल सकते हैं। इसके अलावा अति गंभीर कुपोषित बच्चों के दोनों पैरों में सूजन, लगातार उल्टी होना, 102 डिग्री से तेज बुखार होना, तेज सांस चलना, सीने में दर्द, साइनस, त्वचा/आंखों में घाव या चेचक के बाद कि स्थिति, डायरिया या निर्जलीकरण के लक्षण, गंभीर एनीमिया, हाइपोथर्मिया, बच्चों का कमजोर व निःसहाय महसूस करना जैसे लक्षण हो सकते हैं। ऐसे बच्चों को तुरंत चिकित्सक से जांच कराने के बाद पोषण पुनर्वास केंद्र में पोषण विशेषज्ञ की निगरानी में रखा जाना चाहिए। इससे कुपोषित बच्चों को आवश्यक इलाज द्वारा ठीक किया जा सकता है।
छह माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी :
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ मुनाजिम ने बताया कि शुरुआत के 1000 दिन नवजात शिशु के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। जो कि महिला के गर्भधारण करने से हीं प्रारम्भ हो जाते हैं। आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकता है जिसकी भरपाई बाद में नहीं हो पाती है। शिशु जन्म के बाद पहले वर्ष का पोषण बच्चों के मस्तिष्क और शरीर के स्वस्थ्य विकास और रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 6 माह के बाद बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से शुरू हो जाता है। इसलिए 6 माह के बाद सिर्फ स्तनपान से जरूरी पोषक तत्त्व बच्चे को नहीं मिल पाता है। इसलिए छ्ह माह के उपरान्त अर्ध ठोस आहiर जैसे खिचड़ी, गाढ़ा दलिया, पका हुआ केला एवं मूंग का दाल दिन में तीन से चार बार जरूर देना चाहिए। दो साल तक अनुपूरक आहार के साथ माँ का दूध भी पिलाते रहना चाहिए ताकि शिशु का पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास हो पाए। उन्होंने बताया कि उम्र के हिसाब से ऊँचाई में वांछित बढ़ोतरी नहीं होने से शिशु बौनेपन का शिकार हो जाता है। इसे रोकने के लिए शिशु को स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूर देना चाहिए।
