विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया, किशनगंज।
कोरोना की बंदिश के कारण कुकुरबाघी पंचायत अंतर्गत गंदूगच्छ की ऐतिहासिक माता मेला इस वर्ष नहीं सजा। जिससे 10 फीसदी श्रद्धालु ही पहुंच कर मां भगवती एवं उनकी सात बहनों के दर्शन कर मत्था टेका एवं पान, बतासा, लौंग, नारियल एवं मिष्ठान अर्पित कर सुख सौभाग्य की कामना के साथ मन्नतें मांगी। अगर कोरोना महामारी से पूर्व एक लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ हर वर्ष उमड़ती है। मगर कोरोना बंदिश के कारण इस बार भीड़ मंदिर परिसर तक ही नजर आयी। बताते चलें कि बिहार के अंतिम छोर ठाकुरगंज प्रखंड अंतर्गत कुकुरबाघी पंचायत के गलगलिया थाना क्षेत्र के गन्दूगच्छ में हर साल पौष पूर्णिमा को इस मेले का आयोजन होता है। जिसमें बिहार के अलावे बंगाल, सिक्किम, असम एवं पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।मगर मेला पर कोरोना का ग्रहण लग गया।

कोरोना काल से पूर्व भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अर्धरात्रि के बाद शुरू हुई देवी पूजन का सिलसिला 48 घंटे तक जारी रहता था और इस दौरान कतार में घंटों खड़ी महिलाएं अपनी बारी का इंतजार करती रहती थी। वहीं मेला आयोजन कमिटी द्वारा श्राद्धालुओं की सुविधा हेतु पेयजल,शौचालय सहित चिकित्सा कर्मियों की एक टीम भी यहाँ तैनात की जाती थी,ताकि किसी अप्रिय स्थिति से तत्काल निपटा जा सके। मगर, इस बार फिर यह ऐतिहासिक माता मेला में वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पहले जैसी रौनक नजर नहीं आयी। हालांकि इस बार भी मंदिर में देवी प्रतिमा के दर्शन एवं पूजन को लेकर आपाधापी मची रही मगर कोविड से बचाव के कारण मेले के लिए दूरदराज से आने वाले झूला, सर्कस, जादू तथा मनोरंजन के अन्य साधन और दुकान वाले नहीं आए। गलगलिया पुलिस प्रशासन द्वारा दो दिन पूर्व ही मंदिर का मुख्य द्वार बंद रखने को कहा गया था मगर आस्था के आगे यह बंदिश नही टिक पाई और आस-पास के क्षेत्र से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़े। सबसे ज्यादा महिलाओं में दर्शन के लिए होड़ मची रही। माना जाता है कि माता माई का आशिर्वाद लेने से वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत होता है और माता रानी के दर पर अपनी फरियाद लेकर आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता।
मंदिर के पुरोहित ने बताया कि बलि प्रथा बंद होने के कारण माँ भगवती के दरबार में लोगों द्वारा अपनी मनौतियां उतारने के लिए।कबूतर व बकरा को बलि के रूप में पुरोहित के द्वारा मंत्र उच्चारण कर छोड़ी जाती है अथवा श्रद्धालु अपने घर ले जाते हैं।कारण यहां 10 वर्षों से बली प्रथा बंद है।
