बीरबल महतो, सारस न्यूज़, किशनगंज।
ओमिक्रोन बढ़ते प्रभाव को देखते हुए रविवार को प्रकृति, प्रेम, कृषि उपज व पूर्वजों को स्मरण करते हुए आदिवासी समुदाय का महान त्योहार सोहराय पर्व सादगीपूर्ण तरीके से मनाते हुए शुभारंभ किया गया। प्रखंड के बेसरबाटी ग्राम पंचायत के चुरलीहाट में अवस्थित माँझीथान में आदिवासी समुदाय के महिला व पुरुषों ने अपने पूर्वजों को नमन करते हुए पूजा अर्चना की। इस दौरान आदिवासी समुदाय के लोगों ने कोरोना गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए परंपरागत आदिवासी नृत्य व गायन कर 6 दिनों अर्थात मकर संक्रांति तक चलने वाले सोहराय पर्व का शुभारंभ किया।
इस मौके पर मांझी परगना संथाल समाज के अध्यक्ष अर्जुन हेम्ब्रम ने बताया कि सोहराय पर्व के पहले दिन उम गोड थान पूजा का पूजा किया गया। इसी क्रम में दूसरे दिन अपने पूर्वजों का पूजन, तीसरे दिन खूंटवा में गौ पूजा, चौथे दिन अपने समाज में आपसी विवादों को सुलझाने हेतु बैठक का आयोजन, पांचवें दिन समुदाय की महिला व पुरूष मिलकर नदी या झील में मछली में मछली पकड़ना तथा छठे दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन अपने परंपरागत हथियारों के साथ शिकार में निकलना व शिकार से लौट केला वृक्ष का पूजा कर निशाना साधने के साथ इस पर्व का समापन किया जाता है। छः दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन अलग-अलग तरह के विधि- विधान अपनाएं जाते है।पर्व के शुभारंभ के दिन से ही आदिवासी समाज के समस्त गांव में पारंपरिक नाच-गान व खुशियों में डूब जाता है।
चूंकि कोरोना के बढ़ते कहर को देखते हुए इसे काफी कम संख्या की भीड़ में आयोजित की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि सोहराय पर्व भाई-बहन के संबंध को मधुर बनाता है। वहीं सचिव सुबोध टुडू ने बताया कि यह पर्व सामाजिक संस्कार के साथ-साथ प्रकृति संरक्षण का संदेश देता है। मांझीथान संथाल समाज की धर्म,संस्कृति और रीति- रिवाज की सुरक्षा कवच है। मांझी स्थान में मरांग बुरु (शंकर भगवान), मोरे कुटुरुइकु (पंच देवता), सिंह चांदो निंदो चांदो (सूर्य व चन्द्रमा भगवान), पिलचू हराम पिलचू बूढ़ी (मनु व शतरूपा भगवान) तथा जाहेर ऐरा गोसाई ऐरा (पार्वती माता) की पूजा अर्चना की जाती है। इस अवसर पर भाजपा अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष मुकेश हेम्ब्रम, रमेश सोरेन, विजय मरांडी, पुजारी चतुर हासदा, संतोष हासदा के साथ -साथ आदिवासी नृत्य मंडली के लखीराम सोरेन, मंगल सोरेन, मोटका मुर्मू, बाबूलाल हासदा, मंगलू बासकी तथा महिला नृत्य मंडली की सदस्या फुलमनी टुडू, रोशनी सोरेन, मंझली मुर्मू आदि आदिवासी समुदाय के महिला व पुरूष मौजूद थे।