बीरबल महतो, सारस न्यूज़, ठाकुरगंज।
विजयदशमी पर देवी दुर्गा की विदाई व माँ प्रतिमा विसर्जन के पूर्व महिला श्रद्धालुओं ने सिंदूर की होली खेली। नगर में स्थापित सभी पूजा पंडालों में शुक्रवार को विजयादशमी मनाया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पुरोहित ने विधि पूर्वक विजयादशमी में विसर्जन की प्रक्रिया पूरी की। प्रतिमाओं के विसर्जन के पहले महिला श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा को सिंदूर लगाया,पान से गालों को चुमाया और मुंह मीठा कराया। देवी दुर्गा को विदा करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाओं का जमावड़ा पंडालों में था। फिर आपस में महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाया। ढाकिये की धुन पर नाचती महिला श्रद्धालुओं ने मां को विदाई दी। साथ ही अगले बरस आने का न्यौता दिया। कई महिलाएं सेल्फी लेते, मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ इस पल को कैमरे में कैद करते हुए दिखाई दी। आंखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान लिए महिला श्रद्धालुओं ने माँ दुर्गा से मन्नतें व आशीष मांगा और अपने किसी भी गलतियों के लिए क्षमा याचना की।
इस संबंध में 70 वर्षीय पुरोहित पार्वती चरण गांगुली बताते हैं कि विजयादशमी के दिन बंगाली समाज में सिंदूर खेलने की परंपरा है। इसे सिंंदूर खेला के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के नौ दिन पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि नवरात्र में मां दुर्गा दस दिन के लिए आपने मायके आती हैं। इसलिए जगह-जगह उनके पंडाल सजते हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा और आराधना की जाती है और दशमी पर सिंदूर की होली खेलकर मां दुर्गा को विदा किया जाता है। वे बताते हैं कि नवरात्र पर जिस तरह लड़की के अपने मायके आने पर उसकी सेवा की जाती है, उसी तरह मां दुर्गा की भी खूब सेवा की जाती है। दशमी के दिन मां दुर्गा के वापस ससुराल लौटने का वक्त हो जाता है तो उन्हें खूब सजा कर और सिंदूर लगा कर विदा किया जाता है। आपस में सिंदूर की होली खेलने से पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर लंबे सुहाग की कामना करती हैं। उन्होंने बताया कि सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है और ऐसी मान्यता है इससे पति की उम्र लंबी होती है। वही इस दौरान मां दुर्गा को सिंदूर लगाते हुए महिलाएं काफी भावुक दिखी। विदाई के इस पल में ढाक की धुन पर उत्साह और उमंग का वातावरण दिखाई दिया। बंगाली लोक प्रचलित गीत अश्चे बोछोर आबार होबे गाकर व आबार कोबे बोछोर पोरे जैसे जयकारों से मां से अगले साल फिर आने की कामना की गई। अगले वर्ष उनके आने की कामना करते हुए माँ की प्रतिमा को विसर्जित कर देते हैं।