सारस न्यूज़ के लिए मसूरी से प्रमोद भारतीय।
भारत विश्व का गुरु हुआ करता था। यह यूँ ही नहीं था। वास्तव में, भारत में गुरुओं की परम्परा रही है। चाहे गुरु द्रोण हों, वशिष्ठ हों, विश्वामित्र हों, कृप हों, परशुराम ही क्यों न हों, वे बिना किसी लालच या प्रतिदान के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे। बदले में भिक्षावृत्ति या राजा से प्राप्त धन से अपना तथा अपने बच्चों और शिष्यों का पालन-पोषण करते थे। बाद में इन मूल्यों का ह्रास हुआ और ऐसे गुरुओं की संख्या निरंतर घटती चली गयी।
इसी निरन्तर ह्रास की पृष्ठभूमि में आज बात करते हैं एक ऐसे गुरु की जिन्होंने शिष्यसमाज के लिये जो कुछ किया, क्या समाज ने उसका समुचित मूल्यांकन किया। मेरा तात्पर्य है सुरेश प्रसाद सिंह से जिन्हें लोग प्यार से सुरेश बाबू कहकर संबोधित करते थे।
बात 1976 ई. की है। मैं दिसम्बर मास में ठाकुरगंज स्थित आदर्श मध्य विद्यालय में सातवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा देकर परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा था। पता चला कि आदर्श मध्य विद्यालय की सातवीं कक्षा की परीक्षा में सम्मिलित समस्त परीक्षार्थियों की उत्तरपुस्तिकायें मूल्यांकन हेतु गलगलिया के मध्य विद्यालय को भेज दी गयी थीं और वहाँ की उत्तरपुस्तिकायें मूल्यांकन हेतु अपने आदर्श मध्य विद्यालय आ गयी थीं। परिणाम प्रकाशित करने से पूर्व गलगलिया मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने संदेश भिजवाया कि आदर्श मध्य विद्यालय का एक ऐसा परीक्षार्थी था जिसकी उत्तरपुस्तिका किसी अध्यापक ने लिखी है। फिर आदर्श मध्य विद्यालय के तत्कालीन प्रभारी प्रधानाध्यापक बैजनाथ साह जी ने अपने दो अध्यापकों को वहाँ भेजा, यह स्पष्ट करने के लिये कि उक्त उत्तरपुस्तिका किसी अध्यापक ने नहीं बल्कि सम्बद्ध छात्र ने ही लिखी थी। वह सम्बद्ध छात्र मैं ही था। हालाँकि उत्तरपुस्तिकाओं में बहुत अच्छे अंक नहीं थे। किसी विषय में 33, किसी में 35 तो किसी में 39 अंक ही थे। केवल अंग्रेजी में 72 अंक थे। वास्तव में, परीक्षकों को मेरी लिखावट पर संदेह था। ख़ैर, अंग्रेजी के इस 72 अंक के सहारे मैं यह परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ। स्थानान्तरण प्रमाणपत्र देते हुए बैजनाथ बाबू ने मेरे बारे में मेरे अभिभावक से कहा था, ‘जब तक यह स्कूल में रहा मुझे इसकी प्रतिभा का पता नहीं चला, आज जब यह स्कूल से जा रहा है तब इसकी प्रतिभा का पता हमें चल रहा है।’

उसके बाद और छात्रों की तरह मैंने भी ठाकुरगंज के उच्च विद्यालय में सप्तम नवीन कक्षा में प्रवेश ले लिया था। इसी बीच पता चला कि आदर्श मध्य विद्यालय में एक नये प्रधानाध्यापक ने कार्यभार सँभाल लिया है। मेरा उच्च विद्यालय से अपने कृष्णपुरी स्थित आवास लौटने के मध्य में ही अपना आदर्श मध्य विद्यालय आता था। मैं उस दिन मध्य विद्यालय गया तो देखा ऊँची क़द-काठी का एक विराट व्यक्तित्व जिसका नाम था सुरेश प्रसाद सिंह। मेरे साथ एक-दो और सहपाठी थे। हम सब ने अपना परिचय दिया और सुरेश बाबू के साथ काफी देर बैठने का सौभाग्य प्राप्त किया। इस दर्म्यान उन्होंने एक ऐसा संस्मरण सुनाया जिसे सुनकर मुझे लग गया था कि इनकी दृष्टि बड़ी व्यापक है और ये सबों को साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं। उन्होंने अपने पूर्व के स्कूल की एक घटना बतायी। हुआ यूँ था कि एक कक्षा के दो छात्रो की लड़ाई इस हद तक बढ़ गयी कि दो समुदाय के लोग लाठी, गँडासे लेकर स्कूल पहुँच गये और भीषण रक्तपात को अंजाम देने को तैयार हो गये। तब सुरेश बाबू ने दोनों समुदाय के लोगों को अपने पास बिठाया, उन्हें शीतल जल पिलाया और श्रीमद् भागवतपुराण के एक प्रसंग को उन सब के सामने कुछ इस प्रकार सुनाया कि अभी कुछ देर पहले जो एक-दूसरे का रक्त पीने की तैयारी कर रहे थे अपने अस्त्र-शस्त्र फेंककर एक-दूसरे के गले लगकर आँसू बहा रहे थे। मेरे तो यह संस्मरण सुनकर ही आँखों में आँसू आ गये। मेरे साथ कुछ सहपाठी थी, कुछ अभिभावक थे, उनकी भी आँखें गीली हो गयी थीं। ऐसे चमत्कारी अध्यापक थे गुरुदेव।
अभी पिछले वर्ष ठाकुरगंज गया था तो रेलवे स्टेशन के पीछे वाले चौराहे पर मिल गये थे सुरेश बाबू। मैंने चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया। चलते-चलते ही कुछ देर बातें हुईं। बातचीत के दर्म्यान मुझे महसूस हुआ कि गुरुदेव ने जो कुछ भी समाज के लिये किया, प्रतिदान में ईश्वर ने उन्हें उतना नहीं दिया।
पिछले सप्ताह दिनांक 07 अप्रेल 2025 को करीब सायं 5 बजे इलाज हेतू सिलीगुड़ी जाने के दौरान गुरुदेव का शरीर शान्त हो गया। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वे इस दिव्य आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें। और हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी जीवनशैली से कुछ लेने की चेष्टा करें। गुरुजी को जब भी स्कूल परिसर में देखा सदैव चलायमान देखा, हाथ में एक पतली छडी देखी, मुस्कुराते देखा। उनका जीवन परिश्रम से भरा-पूरा जीवन रहा–
पाँव घायल हैं फिर भी चलना है,
हार को जीत में बदलना है।
रात में जुग्नू टिमटिमाते हैं,
हम तो सूरज हैं धूप में जलना है।
🙏🙏
(प्रमोद भारतीय)
