बीरबल महतो, सारस न्यूज, किशनगंज।
देशभक्ति की भावना निश्चित रूप से हर देश के नागरिक में अपने देश के लिए होती है, पर कोई दूसरे देश के नागरिक हमारे देश के प्रति अपना सर्वोच्च न्योछावर करने की माद्दा रखे, ऐसा बहुत कम लोग ही मानेंगे। पर यह सच है। हमारे पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में एक क्षेत्र ऐसा भी है, जहां बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक हमारे भारतीय सेना में शामिल होकर भारत की सेवा दे चुके हैं और उससे तीन गुणा नेपाली नागरिक आज भी जांबाज फौजी के रूप में देश के कोने कोने में सेवारत हैं। भारतीय झंडे को सीने पर लगाकर नेपाल के युवक भारतीय सेना में देश के सुरक्षा के लिए अपनी बहुमूल्य सेवाएं तो दे ही रहे हैं, तीन सौ अधिक नेपाली गत पांच दशकों में भारतीय फौज में अपना योगदान दे चुके हैं और सेवानिवृत्त होकर भी आनेवाली पीढ़ी को भारतीय फौज में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में वर्त्तमान व भूतपूर्व सैनिकों की संख्या तो हमें अपने देश में भी न देखने में मिलती हैं और न सुनने में ही। यह क्षेत्र नेपाल के झापा जिला का भद्रपुर नगरपालिका क्षेत्र का हिमाली, सोमवारी, बनियानी आदि गाँव हैं। ये गांवें भारत के किशनगंज जिले के ठाकुरगंज प्रखंड के चुरली पंचायत के झाला गांव से सटा व प्रखंड मुख्यालय से सड़क के रास्ते 10 किलोमीटर की दूरी पर ही अवस्थित हैं, यहां के गोरखा फौजी भारतीय फौजी का गांव भी कहा जाता है, क्योंकि यह गांव भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट सहित भारतीय वायु सेना में सैकड़ों की संख्या में जांबाज योद्धा दिए हैं और आज भी इस गांव के युवा भारतीय सेना के विभिन अर्द्धसैनिक बलों में अपना योगदान देकर भारत की सेवा कर रहे हैं।
यहां यह भी बता दें कि यह गाँव नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद शर्मा ओली का पैतृक गांव के साथ-साथ महाभारतकालीन किचकवध पर्यटक स्थल के रुप में भी काफी प्रसिद्ध हैं। हालांकि ये गांव नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के संसदीय क्षेत्र अंतर्गत आता हैं, जिन्हें भारत सरकार के संबंध में अधिक कठोर रुख अपनाने के लिए जाना जाता है। इसके बावजूद यहां के युवा भारतीय सेना में बड़ी संख्या में अपनी भागीदारी दे रहे हैं। ये गांव चाय बागानों, जंगल के बीच-बीचों और पर्वतीय मेची नदी के किनारे बसे हैं। आबादी के दृष्टिकोण से यह भारत देश के किसी भी प्रखंड क्षेत्र के एक पंचायत की आबादी से भी काफी कम है पर इन नेपालवासियों के अंदर भारत की देशभक्ति के जज्बे को देख सारी चुनौतियां बौना साबित हो जाती हैं। इस गांव की जितनी तादाद में नेपाली नागरिक भारतीय आर्मी में अपनी सर्वोच्च सेवाएं दे रहे हैं। इन भूतपूर्व सैनिकों में से कई गोरखा विदेश सेवा पदक, आहत सेवा पदक, दीर्घ सेवा पदक सहित कई पदकों से सुशोभित हुए हैं। 11 गोरखा राइफल्स के एक बटालियन 1/11 जीआर (गोरखा रेजिमेंट) जो 1999 के कारगिल युद्ध में शामिल थे। ये फौजी अपनी जांबाजी से भारत को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। साथ ही भारत-नेपाल की बेटी-रोटी के संबंध को और प्रगाढ़ करती नजर आ रही हैं।
वर्ष 1972 से शामिल हो रहे हैं भारतीय फौज में :-
पांच दशकों अर्थात 50 वर्षों से यानी 1972 से ही इन गांवों से भारतीय फौज में आना शुरू किया था, तब से लेकर अब तक ये फौजी अपने देश की संस्कृति व शैली समेटे हमारी सेना में अपनी प्रतिभा कौशल का प्रदर्शन कर शोभा बढ़ा रही है। इसमें से 127 एयर डिफेंस के नायक पृथ्वी नारायण थापा ने 1972 में भर्त्ती हुई और 17 वर्ष देश की सेवाएं दी। उसी तरह बीएसएफ की 138वीं के सूबेदार जसमान राई ने 1971 में सेना में बहाल हो 31 वर्ष एवं एसीपी नायक सूबेदार ने 1990 में भर्त्ती हो 25 वर्ष सेवाएं दी। सबसे अधिक यहां के लोगों ने 11 गोरखा रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दी है। कैप्टन कृष्ण राज प्रधान 1972 में 11 गोरखा रेजिमेंट (जीआर) में भर्त्ती हो तीस वर्ष देश की सुरक्षा का कमान संभाला। उसी तरह 11 जीआर में लक्ष्मी प्रसाद लिंबू 17 वर्ष, हवलदार दिलहन लिंबू 16 वर्ष, हवलदार तपिरास राय 20 वर्ष, नायक दिल प्रसाद लिंबू 22 वर्ष, नायक भक्त बहादुर लिंबू 16 वर्ष, हवलदार काली बहादुर 24 वर्ष, नायक सुबेदार अमृत बहादुर लिंबू 27 वर्ष, सुबेदार मेघराज लिंबू 26 वर्ष, असम राइफलमैन जीत बहादुर गुरुंग ने 25 वर्ष आदि सहित बड़ी संख्या में ये गोरखा जवानों ने देश के हर प्रमुख सैन्य अभियान में लड़ते हुए भारत देश की सेवा की है।
गोरखा रेजिमेंट की बहादुरी का हिटलर ने भी माना था लोहा:-
नेपाल के इस गोरखाओं के बारे में युद्ध के मैदान से लेकर आम जिंदगी में बहादुरी के किस्से सुनने को मिल जाएंगे। गोरखाओं को उनके निडर चरित्र को देखते हुए बहादुर कहकर भी बुलाया जाता है। गोरखा अपने आसपास हो रहे अत्याचार और अपराधों को कभी सहन नहीं करते। सिविलियन लाइफ में भी वे दुश्मनों से भिड़ जाते हैं। ये रेजिमेंट हर मोर्चे में बेहद चालाक, होशियार और खतरनाक मानी जाती है। द्वितीय विश्व युद्ध में जिस तरह से जर्मन सेना पर गोरखा रेजीमेंट ने कहर बरपाया था उसे देखकर खुद हिटलर दंग रह गया था और उसने कहा था गोरखा रेजीमेंट दुनिया के सबसे बहादुर रेजीमेंट है। एक बार इनसे दुश्मन सेना का पाला पड़ जाए तो फिर सिर्फ उनका शव ही वापस जाता है। ये पूरी तरह से दुश्मनों को नेस्तानबूत कर देती है। कुचल देती है। ये अपने देश और सेना के लिए बेहद ईमानदार और बहादुर माने जाते हैं। सेवा के बाद भी ये रिटायर्ड फौजी ने झापा जिले के ही अंतर्गत भद्रपुर- चंद्रगुड़ी मार्ग में किरात कॉलोनी में भूतपूर्व सैनिक संघ का ऑफिस खोल अन्य सामाजिक सेवाएं देते हुए स्थानीय युवाओं को सही मार्गदर्शन दे रहे हैं। भारतीय आर्मी के 11 गोरखा रेजिमेंट के फौजियों ने कारगिल युद्ध, एलटीटीई युद्ध सहित कई युद्धों में शामिल होकर दुश्मनों के दांत खट्टे किए।
भारत अनेकता में एकता वाला देश है:-
हिमाली(झापा) के एयर डिफेंस के सेवानिवृत्त 66 वर्षीय नायक पृथ्वी नारायण थापा बताते हैं कि हमने वायु सेना में 17 साल के सेवा के दरम्यान यह पाया कि बिहारी हो या मद्रासी, पंजाबी हो या बंगाली, हर कोई आखिरी में भारतीय है। भारत में अनेकता में एकता इसकी मूल पहचान है और यह भारतीय संस्कृति और परंपरा को सबसे अलग एवं समृद्ध बनाने में मदद करती है। भारतीय लोगों की सोच, उनका आचरण, व्यवहार, चरित्र, उनके मानवीय गुण, आपसी प्रेम, संस्कार, कर्म आदि भारत की विविधता को एकता बनाए रखने में मदद करती हैं।