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नेपाल भन्सार में सीमा शुल्क मूल्यांकन बढ़ जाने से गलगलिया होकर भारत निर्मित जरूरी सामानों की तस्करी जोरों पर

Jan 4, 2022 #तस्करी

विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया।

भारत नेपाल सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा एजेंसियां समय-समय पर लोगों को जागरूक करने के साथ बॉर्डर पर कड़ी चौकसी का दावा करती रहती है। मगर इस दावे को चुनौती देते हुए तस्कर इन दिनों भारत-नेपाल बॉर्डर की खुली सीमा का लाभ उठाकर अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं। एसएसबी 41वीं बटालियन एवं गलगलिया कस्टम के भरपूर चौकसी के दावे के बाद भी भातगाँव, भकसरभिट्ठा, निम्बूगुड़ी एवं भातगाँव से सटे बंगाल के ड़ेंगूजोत बीओपी क्षेत्र होकर भारत निर्मित कपड़ा सहित अन्य जरूरी सामानों की तस्करी कर तस्कर अपनी आय बढ़ाने में जुटे हुए हैं।

नेपाल में सीमा शुल्क मूल्यांकन बढ़ जाने से विशेष रूप से भारत निर्मित कपड़े की तस्करी में काफी इजाफा हो गया है। सूत्रों के अनुसार सीमा पर सक्रिय कुख्यात तस्कर संगठित गिरोह बनाकर हर रोज लाखों रुपया के कपड़ा की खुलेआम तस्करी कर भारत सरकार के राजस्व का जमकर चूना लगा रहे है।वहीं तस्करों के हौसले के आगे सीमा पर तैनात एसएसबी व कस्टम बौनी साबित हो रही है। चिंता का विषय यह है कि तस्कर बिना टैक्स और कस्टम के अवैध रास्तों से तस्करी  कर भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट कर लाखों कमा रहे है। जबकि बार्डर पर केंद्र सरकार के सजग प्रहरी पूरी तरह से मुस्तैद है और यहाँ इनकी बगैर इजाजत के परिंदा भी पर नही मार सकता है। बावजूद सीमा पर सक्रिय कुख्यात तस्कर रात के समय कुहासे का फायदा उठाकर इन दिनो भारत से नेपाल के लिए कपड़ा के अलावे दाल, चीनी, हार्डवेयर एवं इलैक्ट्रिक सामान  सहित अन्य सामानो की तस्करी कर रहे है। यही नही सेटिंग के माध्यम से दिन के उजाले में भी कस्टम व एसएसबी के ट्रांजिट रुट भातगाँव के मुख्य नाका होकर इस तस्करी के काम को अंजाम दिया जा रहा है। बिना कस्टम क्लियरेंस के तस्करी कर भेजी गई सामानों पर भारत सरकार को राजस्व का चूना तो लगता ही है, साथ ही नेपाल सरकार को भारी राजस्व का घाटा हो रहा है। वहीं खानापूर्ति के लिए महीने दो महीने में एक जप्ती की कार्रवाही करना इस बात का साफ संकेत है कि तस्कर सक्रिय हैं।

सूत्र बताते हैं कि नेपाल के कपड़ा व्यापारी एक पोका (बोड़ा) कपड़ा को यदि भारतीय बाजारों से उठाकर तस्करी के जरिये नेपाल अपने गोदाम में मंगवाते हैं तो अवैध कारोबारी को उन्हें 20 से 25 प्रतिशत कैरिंग खर्च व कमीशन देना होता है। इसी कमीशन के लालच में कारोबारी ने सीमा शुल्क को छोड़ दिया और अवैध रास्तों से तस्करी का विकल्प चुना है।


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