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चंद्रघण्टा ( माँ का तीसरा रूप) – इस रूप में माँ शेर की सवारी करती हैं; जो अंदर की शक्ति है, जिस पर आरूढ रहना है। शेर कोई बाह्य जानवर नहीं है, अंदर का बल है जिसे नियंत्रित करना है।

कमलेश कमल से साभार, सारस न्यूज़ टीम

कमलेश कमल (एक लेखक, कवि, राष्ट्रवादी विचारक और एक पुलिस अधिकारी) से जानिए और समझिये नवरात्र का वास्तविक अर्थ

यह सृष्टि-चक्र शक्ति-चक्र ही है। सृष्टि का प्रत्येक प्राणी चाहे देव हो, ऋषि हो, मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी– सबमें शक्ति है या सब इसी शक्ति की साधना या शक्ति के उद्यम में संलग्न हैं। यह शक्ति मुख्यतः द्विविध है; शारीरिक-शक्ति और आत्म-शक्ति। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि शारीरिक-शक्ति की उपासना तो कोई स्थूल-बुद्धि मनुष्य ही करेगा; क्योंकि इस शक्ति की सीमा सीमित है; भौतिक है, यह शक्ति काल एवं शरीर सापेक्ष है। ऐसे में, काल-निरपेक्ष, आध्यात्मिक चेतना की संवाहिका होने से बौद्धिक जीव के लिए आत्म-शक्ति ही वरेण्या है; उपासनीया है। नवरात्र इस साधना का एक विशेष अवसर है। नवरात्र के तीसरे दिन हम इसी भाव-भूमि पर अवस्थित हों।

माता का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा का है। वस्तुतः शाक्त-साधना में इस रूप को प्रतीकों के माध्यम से समझने का उद्यम करते हुए इंगित भाव को हृदयंगम करना वरेण्य है।

चंद्रघंटा का अर्थ है– ‘चंद्रमा घंटा के रूप में शोभित है मस्तक पर जिसके’ (बहुव्रीहि समास)। “चंद्र: घंटायां यस्या: सा चंद्रघंटा।” यहाँ चंद्रमा शीतलता और शुभ्र प्रकाश (ज्योत्स्ना) का प्रतीक है।

ध्यान दें कि इस रूप में माँ के रूप 10 हाथ दिखाए गए हैं; जो कि 5 कर्मेन्द्रिय और 5 ज्ञानेंद्रिय के प्रतीक हैं। चंद्रमा सौम्य और सुंदरता का प्रतीक है और वायु तत्त्व का भी। इसलिए देखा जाता है कि कल्पनाशील व्यक्ति वायु प्रधान होते हैं और चंद्रमा की ओर ज्यादा आकृष्ट होते हैं। यह साधना का तीसरा दिन है और माता के इस रूप की पूजा हेतु साधक का ध्यान ‘मणिपुर चक्र’ पर होता है, जो नाभि पर अवस्थित रहता है।

साधना की दृष्टि से माना जाता है कि चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। यहाँ स्मर्तव्य है कि नाभि से ही नाद की उत्पत्ति होती है। अतः, ये क्षण साधक के लिए एकांत एवं अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
इनका मन्त्र है :
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

इस रूप में माँ शेर की सवारी करती हैं; जो अंदर की शक्ति है, जिस पर आरूढ रहना है। शेर कोई बाह्य जानवर नहीं है, अंदर का बल है जिसे नियंत्रित करना है।

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