साभार – जतिन भारद्वाज, निदेशक, यश पब्लिकेशंस, नई दिल्ली।
निश्चित ही मेघों का घर या मेघालय प्रकृति की अनुपम देन है। उमड़ते-घुमड़ते मेघ, सुरम्य वादियाँ, कल-कल बहती नदियाँ पर्यटकों का बरबस मन मोह लेती हैं। यहाँ आने के बाद यहाँ स्थित एक ऐसे गाँव में जाना हुआ जो भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में अपनी एक अलग संस्कृति के लिए सुप्रसिद्ध है। मेघालय से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कॉन्गथोंग गाँव जिसे विस्लिंग विलेज के नाम से भी जाना जाता है।
कॉन्गथोंग गाँव की बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ जब कोई लड़का या लड़की का जन्म होता है; तो मां उसके लिए अर्थात् नाम के संबोधन के लिए एक खास तरीके का धुन तैयार करती है जिसे जिंगरवाई यावबेई (अर्थात माँ के द्वारा तैयार किया गया धुन) कहा जाता है और विशेष बात यह भी है कि यह धुन गाँव में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए निर्मित है और गाँव में रहने वाले लगभग 700 लोगों के लिए अलग-अलग धुन तैयार की गई है। खास बात यह भी है कि जिसके लिए जो धुन बनाई गई है वैसी धुन किसी अन्य के लिए नहीं होती है।
जब 30 जुलाई 2019 को राज्यसभा में मेघालय के सुदूर स्थित एक गाँव कॉन्गथोंग को सांस्कृतिक धरोहर घोषित करने की आवाज उठाई गई, तभी से इस गांव का सांस्कृतिक वैशिष्ट्य प्रकाश में आने लगा। कहा जाना चाहिए कि जब से राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने इस गाँव के विकास की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है, तब से यह गाँव विशेष चर्चा में है। राज्यसभा संसद के विशेष प्रयास से गाँव की मूलभूत सुविधाएं सुधरने लगी और अब तो इस विस्लिंग विलेज को यूनेस्को ने भी सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी में भी शामिल कर किया है।
आज आवश्यकता है कि इस अतुलनीय सांस्कृतिक विरासत के सौंदर्य को बचाया जाए, उसे विस्तार दिया जाए…..यहाँ की मातृशक्ति द्वारा बनाई गई धुनों के सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व को समझा जाए, उसे संयोजित किया जाए।
गाँव के कई लोगों से मिलना और उनकी संस्कृति, परम्परा और मूल्यों को जानना बहुत ही सुखद रहा। प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर ग्राम्य-चित्र… धुन में सम्बोधित करते नाम अब स्मृति में टँग गए हैं।
जतिन भारद्वाज
निदेशक
यश पब्लिकेशंस, नई दिल्ली