Saaras News - सारस न्यूज़ - चुन - चुन के हर खबर, ताकि आप न रहें बेखबर

सरकारी स्कूल में लिफ्ट। पश्चिम बंगाल दार्जिलिंग जिले के विधाननगर में हैं यह मॉडल स्‍कूल। शिक्षा रत्न से सम्मानित हैं स्कूल के हेडमास्टर शमशुल आलम

सारस न्यूज़ टीम, सारस न्यूज़।

यह बात अपने आप में आश्चर्यचकित कर देने वाली है कि सरकारी स्कूल में भला लिफ्ट भी हो सकती है। अगर सोच बेहतर व दूरदर्शी हो तो उससे ही तस्वीर भी बदलती है। ऐसी ही दूरदर्शी सोच के साथ एक बार फिर शिक्षा रत्न शमशुल आलम अपने मुरलीगंज हाईस्कूल को एक नया आयाम देने जा रहे हैं। वह यह कि इस स्कूल में अब बच्चों के लिए लिफ्ट कायम करने की कवायद की जा रही है। इस बारे में प्रधानाध्यापक शमशुल आलम ने कहा कि दिव्यांग बच्चों, गर्भावस्था में शिक्षिकाओं और अस्वस्थ रहने की अवस्था में आम शिक्षकों को भी स्कूल की ऊपरी मंजिलों पर जाने-आने में काफी दुश्वारियां का सामना करना पड़ता है। यूं तो सरकारी योजना से मिली राशि के तहत दिव्यांगों के लिए हर स्कूल में भू-तल पर रैम्प की व्यवस्था होती है जिससे दिव्यांग बच्चे आसानी से स्कूल में अपनी कक्षाओं में जा-आ पाते हैं। मगर, हर कक्षा निचले तल पर ही तो नहीं होती। उच्च श्रेणी की कक्षाएं ऊपरी मंजिलों पर ही होती हैं। ऐसे में सीढ़ियां चढ़-कर पहली, दूसरी या तीसरी मंजिल पर जाना दिव्यांगों के लिए बहुत ही कठिन हो जाता है। इन्हीं समस्याओं को दूर करने की दिशा में यह कवायद की जा रही है।

उन्होंने बताया कि अभी फिलहाल हमने स्कूल में लिफ्ट के लिए जगह चिन्हित कर दी है। इसके साथ ही जगह-जगह विभिन्न संगठनों से संपर्क कर फंड जुटाने का भी प्रयास कर रहे हैं। इस बारे में रोटरी क्लब ऑफ सिलीगुड़ी ग्रीन से कुछ हद तक सार्थक बातचीत हुई है। उस संगठन की ओर से, हम लोगों से लिखित प्रस्ताव मांगा गया है ताकि वह संगठन अपने अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय को भेज सके और वहां से कुछ फंड की व्यवस्था हो सके। इसके अलावा भी कई और संगठनों से भी बातचीत की जा रही है। अगर सहयोग मिल जाता है तो फिर यह सपना भी साकार हो जाएगा। जैसे कि इससे पहले ढेर सारे सपने साकार हुए हैं। उल्लेखनीय है कि सिलीगुड़ी महकमा के फांसीदेवा प्रखंड में विधाननगर अंतर्गत मुरलीगंज गांव में यह स्कूल स्थित है। इसे पश्चिम बंगाल सरकार ने मॉडल स्कूल घोषित किया हुआ है। इसके प्रधानाध्यापक शमशुल आलम को भी उल्लेखनीय कार्यों हेतु पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से शिक्षा रत्न सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इतना ही नहीं, यूनिसेफ ने भी इस स्कूल की सराहना की है। यहां की कार्यपद्धति को बतौर मॉडल सीखने-सिखाने को यूनिसेफ ने डॉक्यूमेंट्री के रूप में दुनिया के सामने पेश किया है। यह एक सरकारी स्कूल होने के बावजूद किसी भी मामले में बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों से कम नहीं है। इसमें वर्तमान में 2000 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं।

रंग-बिरंगे, सुंदर-सुंदर फूलों की बागवानी से सजा परिसर, मछलियों के एक्वेरियम, अंदर-बाहर व चारों ओर गजब की सफाई, जगह-जगह कूड़ेदान, शौचालय की स्वच्छता अविश्वसनीय, राष्ट्रीय औसत 30 बच्चों पर एक नल की जगह 25 बच्चों पर एक नल, शुद्ध पेयजल, 32 सीसीटीवी कैमरों से चप्पे-चप्पे की निगरानी, कंप्यूटरीकृत कक्षाएं, विज्ञान शिक्षा की प्रयोगशाला हो या खेल के लिए मिनी इनडोर स्टेडियम सब कुछ अति उत्तम। बच्चों का स्कूल ड्रेस में ही आना, जीपीएस सिस्टम से लैस स्कूल बस, छात्राओं को मात्र पांच रुपये के सिक्के के एवज सैनिटरी नैपकीन मुहैया कराने को ऑटोमेटिक वेंडिंग मशीन, आदि बहुत कुछ इस स्कूल के आदर्श होने की कहानी आप ही बयान करते हैं। यहां पढ़ाई की खातिर दूरदराज के विद्यार्थी इस स्कूल के आसपास किराए का मकान लेकर भी रहने लगे हैं।

यह सरकारी स्कूल होने के बावजूद बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहा है। यही वजह है कि जर्मनी, कनाडा, फिलीपींस, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश व नेपाल सरीखे देशों से शिक्षा जगत के विशेषज्ञ व सरकारों के प्रतिनिधि इस स्कूल के उद्धारक शमशुल आलम की कार्य पद्धति सीखने उनके पास आए और उनके कार्यों को खूब सराहा। यूनिसेफ जैसे विश्व के प्रतिष्ठित संगठन के सलाहकार जर्मनी के मेल्फ कुईह्ल ने इस स्कूल के बारे में कहा है कि स्कूल प्रबंधन जो कर रहा है, गजब कर रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!