सारस न्यूज टीम, सारस न्यूज, दार्जिलिंग।
पुरे देश में नक्सलवाद की जननी स्थल से विख्यात पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला में स्थित नक्सलबाड़ी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। नक्सल आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल का नक्सलबाड़ी बड़ी तेजी से विकास पथ की ओर अग्रसर हो रही हैं। नक्सल आंदोलन के लिए पूरी दुनिया में चर्चित नक्सलबाड़ी का चेहरा ही नहीं वरन रुप व रंग भी तेजी से बदल रहा है। वर्तमान समय में यहां देख यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि यह वही नक्सलबाड़ी है, जहां से किसानों व मजदूरों के अधिकारों को लेकर कभी सशस्त्र आंदोलन हुए थे। यह बदलाव असाधारण है। नक्सलबाड़ी के बीचोबीच एशियन हाइवे की चमचमाती सड़क से गुजरने पर पता ही नहीं चल पाता है कि हम नक्सलबाड़ी से होकर गुजर रहे हैं। यह सच है कि जहां कभी जंगल ही जंगल थे, आज वहां दुकानें उठ खड़ी हुई हैं। आलम यह है कि नक्सलबाड़ी के हाथीघीसा ब्लॉक के सेवदेल्ला ग्राम पंचायत में कानू सान्याल जिस स्थान पर रहा करते थे आज उस जगह की पहचान करना मुश्किल है। इसके आस-पास कंक्रीट की बहुमंजिले इमारत खड़ी होती चली जा रही हैं। पास में ही कांवेंट स्कूल खुल चुका है। यहां कभी नक्सल आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल रहा करते थे। उनके निधन के बाद उनके घर को कानू सान्याल मेमोरियल ट्रस्ट भवन का नाम दिया गया है। वर्तमान में यहां कोई हलचल नहीं है। यह वीरान हालत में है। कानू सान्याल जब जीवित थे तब यहां उनके कार्यकर्ता व नेताओं से यह जगह गुलजार रहा करता था। देश के विभिन्न हिस्सों से पार्टी के लोगों का आना-जाना लगा रहता था। पर अब परिस्थितियां बदल चुकी है। संगठन कमजोर एवं इनकी गतिविधियां सीमित हो चुकी हैं। इस क्षेत्र में पार्टी दम तोड़ रही है।
वहीं अब स्थानीय युवाओं को नक्सलबाड़ी के इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं बची है। यहां के युवाओं से नक्सलबाड़ी के आंदोलन को लेकर सवाल करने पर वह कहते हैं कि उन्होंने सुना है कि कभी यहां आंदोलन हुआ था। यह पुरानी बातें हैं। अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है। अब उन्हें रोजगार चाहिए। नक्सलबाड़ी में रोजगार के अवसर नहीं हैं। वे काम करने के लिए नेपाल जाते हैं। यहां कारखाना नहीं है।
क्या था नक्सल आंदोलन:-
नक्सल आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल को बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जेल में रहते हुए उनकी मुलाकात चारु मजुमदार से हुई। कानू सान्याल ने 1967 में नक्सलबाड़ी गांव से नक्सल आंदोलन की शुरुआत की थी और पहले विद्रोह में 11 किसान पुलिस की गोलियों का शिकार हुए थे। आगे चलकर इस आंदोलन ने जोर पकड़ा जो नक्सली आंदोलन के रुप में जाना जाने लगा। इसकी शुरुआत कानू सान्याल और उनके मित्र चारु मजूमदार ने की थी। इन दोनों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का गठन किया। माले के सशस्त्र आंदोलन ने सत्तर के दशक में पश्चिम बंगाल और पूरे भारत को को हिला कर रख दिया था। बाद में सान्याल को गिरफ्तार किया गया और विशाखापटनम में उन्हें जेल में रखा गया। उन पर जो मामला चला उसे पार्वतीपुरम नक्सलाइट षडयंत्र के नाम से जाना जाता है।
पश्चिम बंगाल और भारत सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद 1977 में उन्हें जेल से रिहा किया गया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कानू सान्याल की रिहाई में मुख्य भूमिका निभाई थी। ज्योति बसु मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के थे लेकिन फिर भी उन्होंने कानू को रिहा करवाया।
अपने जीवन के अंतिम समय में कानू सान्याल ने यह कहकर सभी को चौंका दिया था कि नक्सलबाड़ी का आंदोलन सही था, लेकिन समय के साथ आंदोलन की दिशा गलत होती चली गई। इसका उन्हें अफसोस था। कानू सान्याल ने 23 मार्च 2010 को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।