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सीमावर्ती क्षेत्र में नेपालियों का प्रमुख पर्व दशैं मन रही हैं धूमधाम से। विजयदशमी के बाद पन्द्रह दिनों तक चलता है पर्व। दशैं पर्व नेपाल का सबसे लंबा मनाया जाने वाला है पर्व

Oct 17, 2021

बीरबल महतो, सारस न्यूज़, किशनगंज।

हिन्दू धर्म के विभिन्न पर्व-त्योहारों में नेपालियों में भी अपनी सांस्कृतिक एवं पारम्परिक महत्त्व को प्राथमिकता दी जाती हैं। नेपाल हिंदू राष्ट्र माना जाता है और भारतीयों की तरह नेपाली भी सभी हिन्दू पर्व/त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं। इसी क्रम में विजयदशमी से ही भारत-नेपाल सीमा पर स्थित भारत के ठाकुरगंज, गलगलिया, पानीटंकी, नक्सलबाड़ी आदि क्षेत्रों में रह रहे नेपाल मूल के नागरिक तथा नेपाल के नागरिक विशेष कर नेपाली हिंदू दशै पर्व धूमधाम से मनाते हैं। विजयदशमी से आश्विन मास के पूर्णिमा तक खासतौर पर मनाया जाने वाला दशै पर्व नेपाली हिंदुओं का सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है। ठाकुरगंज निवासी सुभाष थापा, भीम बहादुर राउत, नेपाल के झापा जिला के भद्रपुर निवासी सुरेश पोडवेल, सरोज श्रेष्ठ, प्रभु थापा,चांदनी गुरुंग आदि बताते हैं कि दशै पर्व नेपाली हिंदुओं का प्रमुख पर्व हैं जिसमें हम अपने बड़े-बुजुर्गों से टीका लगवाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व विजयदशमी से पंद्रह दिन तक मनाया जाता हैं। माथे पर चावल व रंग मिश्रित टीका कपाल (माथा) पर लगवाकर आशीर्वाद लेते हैं। इस वक्त नए नए कपड़े पहन अपने बड़े बुजुर्गों से टीका लगवाते हैं। नेपाली नागरिकों ने बताया कि पन्द्रह दिनों तक चलने वाला यह पर्व नेपालियों का सबसे लंबा मनाया जाने वाला त्योहार है। इस मौके पर हम अपने घर को साफ-सुथरा रखते हैं तथा घरों को सजाते हैं।अमीर हो या गरीब सभी इस पर्व को उल्लासपूर्ण माहौल में मनाते हैं। इस दौरान पन्द्रह दिन में परंपरागत तरीके से बाँसों का झूला बनाकर बच्चें, जवान, बूढ़े सहित हर आयु वर्ग के लोग झूला में झूल कर इस पर्व का आनंद उठाते हैं। मालूम हो कि माता दुर्गा की नवमी तक पूजा करने के बाद नेपाल के लोगों में विजयदशमी से टिका का पालन शुरू हो जाता है। सारे सरकारी कार्यालय, शिक्षण संस्थान व अन्य प्रतिष्ठान पर्व के दरम्यान बंद रहते हैं। पंद्रह दिन के इस पर्व में पहला, सातवां से दसवां एवं अंतिम पन्द्रहवें दिन काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नेपाली संप्रदाय का यह पर्व पूर्णिमा तक चलता है। नेपाल के लोग इस पर्व को धूमधाम के साथ मनाने से पीछे नहीं हटते है। लोग अपने दुख व कष्ट को छोड़कर अपने परिवार में बड़े बुजूर्ग के घर जाकर उनसे आर्शिवाद लेते है। सभी एक होकर इस पर्व की खुशियां मनाते है।

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