तेरापंथ समाज के वरिष्ठतम श्रावक संपतमल सेठिया ने 83 वर्ष की आयु में वर्षीतप जैसी अत्यंत कठिन तपस्या को पूर्ण कर अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर डीसा (गुजरात) में गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में इक्षुरस द्वारा पारणा किया। यह तपस्या न केवल जैन समाज के लिए बल्कि संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
वर्षीतप – तप की पराकाष्ठा
वर्षीतप वह महान तप है जिसमें साधक 13 महीनों तक एक दिन उपवास और एक दिन आहार लेकर जीवन का संचालन करता है। इस कठिन साधना में रात्रि भोजन, जमीकंद, और सचित जल का पूर्ण रूप से त्याग किया जाता है। तप के मध्य कई बार दो या तीन दिन का उपवास भी आता है, जिसे तपस्वी संकल्पपूर्वक निभाते हैं।
जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, यह तप भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) की परंपरा से जुड़ा है, जिन्होंने दीक्षा लेने के बाद 13 माह तक अन्न ग्रहण नहीं किया। अंततः उनके परपोते श्रेयांश कुमार ने उन्हें इक्षुरस (गन्ने का रस) अर्पित कर यह परंपरा शुरू की, जो आज भी अक्षय तृतीया पर जैन समाज में जारी है।
संपतमल सेठिया – तप का आदर्श स्वरूप
फारबिसगंज के एसके रोड, छुआपट्टी निवासी संपतमल सेठिया ने 83 वर्ष की उम्र में इस तप को संपन्न कर समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। तपस्या में उन्हें उनकी धर्मपत्नी, पुत्र सुनील कुमार, बहू सरिता सेठिया, पोते-पोतियों और समस्त परिवार का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ।
सरिता सेठिया, जो वर्तमान में फारबिसगंज तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा हैं, ने बताया कि “पिताजी ने इस कठिन तपस्या को अपने पूरे आत्मबल और संयम से पूर्ण किया। परिवार को उन पर गर्व है।”
समाज में हुआ तपोभिनंदन
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा फारबिसगंज के अध्यक्ष महेंद्र बैंद ने तपस्वी भाई को शुभकामनाएं देते हुए कहा, “83 वर्ष की उम्र में वर्षीतप करना वास्तव में समाज के लिए प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। हम सभी उनके इस तप को नमन करते हैं।”
इस विशेष अवसर पर सभा की ओर से तपोभिनंदन किया गया और जैन भजनों का आयोजन भी हुआ, जिसमें समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया और सेठिया परिवार के निवास स्थान जाकर उनका अभिनंदन किया। अन्य समुदायों से भी तपस्वी भाई को शुभकामनाएं प्राप्त हुईं।
निर्जरा के पथ पर प्रेरणास्रोत
जैन दर्शन में कहा गया है — संवर और निर्जरा ही मोक्ष का मार्ग है, और तप ही वह साधन है जो आत्मा को कर्मों से मुक्त करता है। तपस्वी भाई संपतमल सेठिया ने यह सिद्ध कर दिखाया कि आयु कोई बाधा नहीं, यदि संकल्प दृढ़ हो। उनका यह तप हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
सारस न्यूज़, अररिया।
तेरापंथ समाज के वरिष्ठतम श्रावक संपतमल सेठिया ने 83 वर्ष की आयु में वर्षीतप जैसी अत्यंत कठिन तपस्या को पूर्ण कर अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर डीसा (गुजरात) में गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में इक्षुरस द्वारा पारणा किया। यह तपस्या न केवल जैन समाज के लिए बल्कि संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
वर्षीतप – तप की पराकाष्ठा
वर्षीतप वह महान तप है जिसमें साधक 13 महीनों तक एक दिन उपवास और एक दिन आहार लेकर जीवन का संचालन करता है। इस कठिन साधना में रात्रि भोजन, जमीकंद, और सचित जल का पूर्ण रूप से त्याग किया जाता है। तप के मध्य कई बार दो या तीन दिन का उपवास भी आता है, जिसे तपस्वी संकल्पपूर्वक निभाते हैं।
जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, यह तप भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) की परंपरा से जुड़ा है, जिन्होंने दीक्षा लेने के बाद 13 माह तक अन्न ग्रहण नहीं किया। अंततः उनके परपोते श्रेयांश कुमार ने उन्हें इक्षुरस (गन्ने का रस) अर्पित कर यह परंपरा शुरू की, जो आज भी अक्षय तृतीया पर जैन समाज में जारी है।
संपतमल सेठिया – तप का आदर्श स्वरूप
फारबिसगंज के एसके रोड, छुआपट्टी निवासी संपतमल सेठिया ने 83 वर्ष की उम्र में इस तप को संपन्न कर समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। तपस्या में उन्हें उनकी धर्मपत्नी, पुत्र सुनील कुमार, बहू सरिता सेठिया, पोते-पोतियों और समस्त परिवार का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ।
सरिता सेठिया, जो वर्तमान में फारबिसगंज तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा हैं, ने बताया कि “पिताजी ने इस कठिन तपस्या को अपने पूरे आत्मबल और संयम से पूर्ण किया। परिवार को उन पर गर्व है।”
समाज में हुआ तपोभिनंदन
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा फारबिसगंज के अध्यक्ष महेंद्र बैंद ने तपस्वी भाई को शुभकामनाएं देते हुए कहा, “83 वर्ष की उम्र में वर्षीतप करना वास्तव में समाज के लिए प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। हम सभी उनके इस तप को नमन करते हैं।”
इस विशेष अवसर पर सभा की ओर से तपोभिनंदन किया गया और जैन भजनों का आयोजन भी हुआ, जिसमें समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया और सेठिया परिवार के निवास स्थान जाकर उनका अभिनंदन किया। अन्य समुदायों से भी तपस्वी भाई को शुभकामनाएं प्राप्त हुईं।
निर्जरा के पथ पर प्रेरणास्रोत
जैन दर्शन में कहा गया है — संवर और निर्जरा ही मोक्ष का मार्ग है, और तप ही वह साधन है जो आत्मा को कर्मों से मुक्त करता है। तपस्वी भाई संपतमल सेठिया ने यह सिद्ध कर दिखाया कि आयु कोई बाधा नहीं, यदि संकल्प दृढ़ हो। उनका यह तप हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
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