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अलीगढ़ में मीट ले जा रहे युवकों पर भीड़ का हमला: जांच में निकला भैंस का मांस, पुलिस ने चार को गिरफ़्तार किया, SSP ने कहा– “दबाव में नहीं आऊंगा”।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले में 24 मई 2025 को एक बेहद चिंताजनक घटना घटी, जहां चार युवकों को गोकशी के शक में भीड़ ने बुरी तरह पीट दिया। हमले में घायल युवकों की हालत गंभीर है और पुलिस की जांच में सामने आया है कि वे भैंस का मांस ले जा रहे थे — वह भी वैध दस्तावेज़ों के साथ। इस मामले में अब तक 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कुल 38 के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है।

घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली, भीड़ का कानून हाथ में लेना, और एसएसपी संजीव सुमन की सख्ती चर्चा का विषय बन गई है।

घटना कैसे हुई?

चार युवक—क़दीम कुरैशी, अक़ील (मुन्ना), अक़ील कुरैशी और अरबाज़—हरदुआगंज थाना क्षेत्र में स्थित एक वैध मीट फैक्ट्री से भैंस का मांस लेकर अतरौली जा रहे थे। उनके पास फैक्ट्री की रसीद और लाइसेंस समेत सभी वैध दस्तावेज़ मौजूद थे।

रास्ते में पनैठी कस्बे के पास कुछ बाइक सवार युवकों ने उनकी पिकअप गाड़ी को रोका। शुरू में वे केवल बात कर रहे थे और दस्तावेज़ देखने की बात कह रहे थे, लेकिन कुछ ही देर में एक और समूह वहां पहुंचा, जिसने अचानक उत्तेजक नारेबाज़ी करते हुए चारों युवकों पर हमला बोल दिया।

हमलावरों ने 50,000 रुपये की मांग की और मना करने पर गाड़ी में आग लगा दी। मोबाइल फोन और पैसे भी छीन लिए गए।

इन युवाओं का दावा है कि फ़ैक्ट्री से निकलते ही कुछ बाइक सवारों ने उनकी पिक-अप गाड़ी का पीछा करना शुरू कर दिया था और जब वे फ़ैक्ट्री से क़रीब 15 किलोमीटर दूर पनैठी क़स्बे से अतरौली की तरफ़ बढ़े ही थे कि बाइक सवारों ने उनकी गाड़ी के आगे बाइक लगाकर उन्हें रोक दिया। क़दीम के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। वह दावा करते हैं कि दो सप्ताह पहले भी उन्हें इसी तरह कथित हिंदूवादी युवाओं के समूह ने रोका था।

घायलों की हालत और बयान

घटना में चारों युवक गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ में भर्ती कराया गया।

  • क़दीम कुरैशी ने बताया कि दो हफ्ते पहले भी इसी इलाके में उनसे पैसे मांगे गए थे।
  • अरबाज़ की हालत इतनी खराब है कि वे बिना सहारे वॉशरूम भी नहीं जा सकते।

सभी युवकों ने कहा कि वे मांस की वैध डिलीवरी कर रहे थे और कई बार बताया कि यह भैंस का मांस है, लेकिन हमलावरों ने एक नहीं सुनी।

पीड़ितों का कहना है कि हमले के दौरान डायल 112 की एक पुलिस गाड़ी मौके से गुज़री, लेकिन रुकने के बजाय आगे निकल गई। बाद में आई दूसरी पुलिस टीम ने किसी तरह उन्हें भीड़ से छुड़ाया।

अब तक की पुलिस कार्रवाई

  • अब तक 38 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है।
  • चार मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है – विजय बजरंगी, विजय गुप्ता, लवकुश और भानु प्रताप।
  • मथुरा लैब से आई फॉरेंसिक रिपोर्ट में मांस को भैंस का मांस बताया गया है, जिससे गोकशी का मामला बंद किया जाएगा।
  • पीड़ितों के अनुसार हमले का मुख्य आरोपी विजय बजरंगी हादसे के दौरान सबसे आगे था।

परिवारों के आरोप

पीड़ितों के परिवारों ने आरोप लगाया कि यह हमला धार्मिक पूर्वाग्रह और रंगदारी की मंशा से हुआ। उन्होंने कहा कि इलाके में पहले भी इस तरह की धमकियाँ दी जाती रही हैं।

एक आरोपी रामकुमार आर्य को विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा बताया जा रहा है, हालांकि पुलिस ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है।

प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल

घटनास्थल से हरदुआगंज थाना करीब 16 किमी दूर है। यह सवाल उठ रहा है कि जब पहले भी इस रास्ते पर घटनाएं हुई हैं, तो पुलिस गश्त और निगरानी क्यों नहीं बढ़ाई गई?

क़दीम कुरैशी ने कहा:

“अगर पुलिस 10 मिनट और लेट हो जाती, तो शायद हम जिंदा न होते।”

हिंदू महासभा का प्रदर्शन और SSP संजीव सुमन की सख्ती

घटना के बाद जब पुलिस ने हमलावरों को गिरफ्तार किया, तो हिंदू महासभा ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

2 जून को महासभा ने SSP ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया, आरोप लगाया कि “निर्दोष हिंदुओं” को फंसाया जा रहा है।

इसी दौरान SSP संजीव सुमन खुद बाहर आए और प्रदर्शनकारियों को दो टूक जवाब दिया:

“अगर आप मुझ पर दबाव बनाना चाहते हैं, तो नहीं बना पाएंगे। व्यवस्था बनी है। मैं मीटिंग छोड़कर यहां बात करने आया हूं। अगर लगता है कि चीख-चिल्लाकर आप मुझे दबा लेंगे — तो ऐसा नहीं होने वाला। या तो अंदर आकर बात कीजिए, नहीं तो आप जो करना चाहें करें।”

उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें वे कानून का पाठ पढ़ाते और भीड़तंत्र को चुनौती देते दिखे।

कौन हैं संजीव सुमन?

  • IPS संजीव सुमन 2014 बैच के अधिकारी हैं।
  • वे बिहार के खगड़िया ज़िले से हैं और IIT रुड़की से कंप्यूटर साइंस में बीटेक कर चुके हैं।
  • पहले प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने के बाद सिविल सेवा में आए।
  • उनकी पहली पोस्टिंग ASP बागपत में हुई थी। फिर SP बागपत, DSP लखनऊ, SP लखीमपुर खीरी, और SSP मुजफ्फरनगर जैसे अहम पदों पर रह चुके हैं।
  • 2023 में कांवड़ यात्रा के दौरान उन्होंने नाराज कांवड़ियों को मनाने के लिए खुद मौके पर जाकर डांस भी किया था — जो काफ़ी वायरल हुआ था।
  • उनकी छवि एक सख्त लेकिन संवेदनशील अफसर की रही है, जो ना तो दबाव में काम करते हैं और ना ही ‘नेतागिरी’ से प्रभावित होते हैं।

निष्कर्ष:

अलीगढ़ की यह घटना सिर्फ एक मॉब लिंचिंग नहीं, बल्कि समाज और कानून के बीच संघर्ष का प्रतीक बन गई है। जब वैध दस्तावेज़ों और साफ फॉरेंसिक रिपोर्ट के बावजूद भीड़ खुद ‘न्याय’ करने लगे, तो यह सवाल खड़ा करता है कि क्या देश में कानून का राज बचा है?

वहीं दूसरी ओर, SSP संजीव सुमन जैसे अफसरों का डटकर खड़ा होना यह उम्मीद जगाता है कि यदि प्रशासन निष्पक्ष और सख्त हो, तो भीड़तंत्र और नफरत को रोका जा सकता है।


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