बिहार में पर्यटन उद्योग का सबसे बड़ा संकट एक जगह पर पर्यटकों को कम से कम एक दिन रोकने की है। एक-दो जगहों को छोड़ दें तो राज्य के स्तर पर टूर आपरेटर भी गंभीरता से सक्रिय नहीं हैं। दिलचस्प यह कि बिहार के बाहर के टूर आपरेटर बिहार के पर्यटन स्थलों के लिए नियमित रूप से पैकेज संचालित कर रहे। वैसे हाल के दिनों में दो-तीन जगहों पर सरकार के स्तर पर इस दिशा में काम जरूर शुरू हुआ है कि पर्यटकों की टोली को अधिक से अधिक समय तक रोका जा सके।
बुद्ध सर्किट का हाल यह कि वाराणसी से आपरेट कर रहे टूर आपरेटर
बिहार में बुद्ध सर्किट के तहत पर्यटकों की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही। यहां सोचने लायक बात यह है कि वाराणसी के टूर आपरेटर बिहार में बुद्ध सर्किट से जुड़े पर्यटक स्थलों को लेकर कई किस्म के प्लान के साथ काम कर रहे। बड़े-बड़े वाल्वो बसों में सवार होकर पर्यटक बोधगया आते हैैं। भगवान बुद्ध का दर्शन करने के बाद वे पर्यटक राजगीर और वैशाली होते हुए कुशीनगर के लिए निकल जाते हैैं। टूर आपरेटर इस कोशिश में रहते हैैं कि रात में रुकना नहीं पड़े। इनके लिए भोजन के पैकेट यहां तक कि पानी की व्यवस्था भी बाहर के टूर आपरेटर अपने स्तर पर कर लेते हैैं। यही हाल विदेश से चार्टड प्लेन से आने वाले विदेशी पर्यटकों का है। उनका संकट यह होता है कि बुद्ध सर्किट में उन्हें स्टार होटल उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसा नहीं है कि होटल नहीं है। लेकिन जिस सीजन में पर्यटकों का आना अधिक होता है। उस महीने में स्तरीय होटलों में जगह नहीं रहती। विदेश से आने वाले पर्यटक तो अपने देश द्वारा बनाए गए मंदिरों में रह लेते हैैं। वैसे बोधगया में सरकार के स्थल पर पर्यटकों के आवासन के स्टार होटल का निर्माण जरूर कराया जा रहा। वैशाली में पर्यटकों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं। पर्यटक यहां से आगे निकल लेते हैैं।
एक दिन से अधिक का आकर्षण भी नहीं पर्यटकों के लिए
बिहार के पर्यटन स्थलों का संकट यह है कि किसी एक जगह पर एक दिन से अधिक का आकर्षण नहीं। वैसे पटना से राजगीर तक का जो पर्यटकीय आकर्षण है। वह अब एक दिन से अधिक का जरूर हो गया है। पर्यटक पटना से नालंदा जाते हैं इसके बाद पावापुरी जल मंदिर घूमने के बाद राजगीर पहुंचते हैैं। राजगीर में पर्यटकों के लिए पुराने आकर्षण के अतिरिक्त अब पांडु पोखर, घोड़ा कटोरा, जू सफारी, नेचर सफारी व वेणु वन आदि हैैं। रोपवे भी नया है। यह पूरा मामला एक दिन से अधिक का है। यहां भी कोई नियोजित टूर आपरेटर नहीं मिलते। पर्यटकों को सब कुछ अपने स्तर पर करना होता है। स्तरीय होटल भी अभी कम हैैं। जाड़े के मौसम में बंगाल के पर्यटक खूब आते हैैं। पहले कोलकाता से राजगीर एक ट्रेन भी आती थी, लेकिन वह बंद है। नवादा का ककोलत अपने जलप्रपात के लिए मशहूर है। यहां भी संकट यह है कि पर्यटक अगर रात में रुकना चाहें तो उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं। बढ़िया कैफेटेरिया भी उपलब्ध नहीं।
आर्ट एंड क्राफ्ट की कमी नहीं, लेकिन पर्यटन वाले अंदाज में नहीं हो रहा प्रदर्शन।
बिहार में आर्ट एंड क्राफ्ट कई तरह के हैैं, लेकिन इनका प्रदर्शन उस तरह से नहीं हो पा रहा कि पर्यटक उसे देखने के लिए रुकें। राजगीर के समीप पर बावन बूटी और सूजनी आर्ट से जुड़े लोग हैैं। लेकिन यहां पर्यटक नहीं लाए जा रहे। एक समय विलेज टूरिज्म की बात बढ़ी भी लेकिन योजना ने बीच में ही दम तोड़ दिया।
इको टूरिज्म का खूब आकर्षण, लेकिन वहां ले जाने की संस्थागत व्यवस्था नहीं
इको टूरिज्म को लेकर बिहार में हाल के दिनों में आकर्षण बढ़ा है। लोग जाना चाहते हैैं। लेकिन पर्यटक वहां पहुंचें कैसे इसकी कोई संस्थागत व्यवस्था नहीं। वाल्मीकिनगर व्याघ्र अभयारण्य (वीटीआ) के भीतर आवासन की व्यवस्था छोटे स्तर पर है। इको टूरिज्म के अन्य जगहों पर यह सुविधा नहीं है।
सारस न्यूज टीम, बिहार।
बिहार में पर्यटन उद्योग का सबसे बड़ा संकट एक जगह पर पर्यटकों को कम से कम एक दिन रोकने की है। एक-दो जगहों को छोड़ दें तो राज्य के स्तर पर टूर आपरेटर भी गंभीरता से सक्रिय नहीं हैं। दिलचस्प यह कि बिहार के बाहर के टूर आपरेटर बिहार के पर्यटन स्थलों के लिए नियमित रूप से पैकेज संचालित कर रहे। वैसे हाल के दिनों में दो-तीन जगहों पर सरकार के स्तर पर इस दिशा में काम जरूर शुरू हुआ है कि पर्यटकों की टोली को अधिक से अधिक समय तक रोका जा सके।
बुद्ध सर्किट का हाल यह कि वाराणसी से आपरेट कर रहे टूर आपरेटर
बिहार में बुद्ध सर्किट के तहत पर्यटकों की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही। यहां सोचने लायक बात यह है कि वाराणसी के टूर आपरेटर बिहार में बुद्ध सर्किट से जुड़े पर्यटक स्थलों को लेकर कई किस्म के प्लान के साथ काम कर रहे। बड़े-बड़े वाल्वो बसों में सवार होकर पर्यटक बोधगया आते हैैं। भगवान बुद्ध का दर्शन करने के बाद वे पर्यटक राजगीर और वैशाली होते हुए कुशीनगर के लिए निकल जाते हैैं। टूर आपरेटर इस कोशिश में रहते हैैं कि रात में रुकना नहीं पड़े। इनके लिए भोजन के पैकेट यहां तक कि पानी की व्यवस्था भी बाहर के टूर आपरेटर अपने स्तर पर कर लेते हैैं। यही हाल विदेश से चार्टड प्लेन से आने वाले विदेशी पर्यटकों का है। उनका संकट यह होता है कि बुद्ध सर्किट में उन्हें स्टार होटल उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसा नहीं है कि होटल नहीं है। लेकिन जिस सीजन में पर्यटकों का आना अधिक होता है। उस महीने में स्तरीय होटलों में जगह नहीं रहती। विदेश से आने वाले पर्यटक तो अपने देश द्वारा बनाए गए मंदिरों में रह लेते हैैं। वैसे बोधगया में सरकार के स्थल पर पर्यटकों के आवासन के स्टार होटल का निर्माण जरूर कराया जा रहा। वैशाली में पर्यटकों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं। पर्यटक यहां से आगे निकल लेते हैैं।
एक दिन से अधिक का आकर्षण भी नहीं पर्यटकों के लिए
बिहार के पर्यटन स्थलों का संकट यह है कि किसी एक जगह पर एक दिन से अधिक का आकर्षण नहीं। वैसे पटना से राजगीर तक का जो पर्यटकीय आकर्षण है। वह अब एक दिन से अधिक का जरूर हो गया है। पर्यटक पटना से नालंदा जाते हैं इसके बाद पावापुरी जल मंदिर घूमने के बाद राजगीर पहुंचते हैैं। राजगीर में पर्यटकों के लिए पुराने आकर्षण के अतिरिक्त अब पांडु पोखर, घोड़ा कटोरा, जू सफारी, नेचर सफारी व वेणु वन आदि हैैं। रोपवे भी नया है। यह पूरा मामला एक दिन से अधिक का है। यहां भी कोई नियोजित टूर आपरेटर नहीं मिलते। पर्यटकों को सब कुछ अपने स्तर पर करना होता है। स्तरीय होटल भी अभी कम हैैं। जाड़े के मौसम में बंगाल के पर्यटक खूब आते हैैं। पहले कोलकाता से राजगीर एक ट्रेन भी आती थी, लेकिन वह बंद है। नवादा का ककोलत अपने जलप्रपात के लिए मशहूर है। यहां भी संकट यह है कि पर्यटक अगर रात में रुकना चाहें तो उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं। बढ़िया कैफेटेरिया भी उपलब्ध नहीं।
आर्ट एंड क्राफ्ट की कमी नहीं, लेकिन पर्यटन वाले अंदाज में नहीं हो रहा प्रदर्शन।
बिहार में आर्ट एंड क्राफ्ट कई तरह के हैैं, लेकिन इनका प्रदर्शन उस तरह से नहीं हो पा रहा कि पर्यटक उसे देखने के लिए रुकें। राजगीर के समीप पर बावन बूटी और सूजनी आर्ट से जुड़े लोग हैैं। लेकिन यहां पर्यटक नहीं लाए जा रहे। एक समय विलेज टूरिज्म की बात बढ़ी भी लेकिन योजना ने बीच में ही दम तोड़ दिया।
इको टूरिज्म का खूब आकर्षण, लेकिन वहां ले जाने की संस्थागत व्यवस्था नहीं
इको टूरिज्म को लेकर बिहार में हाल के दिनों में आकर्षण बढ़ा है। लोग जाना चाहते हैैं। लेकिन पर्यटक वहां पहुंचें कैसे इसकी कोई संस्थागत व्यवस्था नहीं। वाल्मीकिनगर व्याघ्र अभयारण्य (वीटीआ) के भीतर आवासन की व्यवस्था छोटे स्तर पर है। इको टूरिज्म के अन्य जगहों पर यह सुविधा नहीं है।
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