बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों का बिगुल बजते ही राज्य की सियासी फिजाओं में गर्माहट तेज हो गई है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों—राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों—में टिकट को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। हर विधानसभा क्षेत्र में एक नहीं, बल्कि दर्जनों नेता अपने-अपने दावेदारी के साथ मैदान में उतर आए हैं। इससे साफ है कि इस बार प्रत्याशी चयन हर पार्टी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम साबित होने वाला है।
जमीन से जुड़े नेता हों या सोशल मीडिया पर सक्रिय चेहरे—हर कोई टिकट पाने की होड़ में लगा है। कई पुराने विधायक जहां अपनी सीट दोबारा पाने के लिए जोड़-तोड़ में लगे हैं, वहीं नए और युवा नेता भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। जातीय संतुलन, क्षेत्रीय समीकरण, और जीत की संभावना जैसे कई फैक्टरों को ध्यान में रखकर पार्टियां उम्मीदवारों का चयन करेंगी।
दल बदल का दौर भी जारी चुनाव की आहट के साथ ही दल-बदल की राजनीति भी चरम पर पहुंच गई है। कई नेता जहां पार्टी से नाराज होकर दूसरी पार्टी का रुख कर रहे हैं, वहीं कुछ नेताओं को दूसरी पार्टियों से ‘ऑफर’ भी मिल रहे हैं। ऐसे में पार्टियों के लिए अपने मजबूत चेहरों को बचाए रखना भी एक बड़ी चुनौती बन गया है।
टिकट के लिए जनता से दिखावा नहीं, काम का होगा रिपोर्ट कार्ड विशेषज्ञों की मानें तो इस बार का चुनाव परफॉर्मेंस आधारित होने वाला है। पार्टियां उन चेहरों को प्राथमिकता देंगी जिनका जनता के बीच पकड़ मजबूत है और जिन्होंने क्षेत्र में विकासात्मक कार्य किए हैं। चुनावी सर्वे और फीडबैक रिपोर्ट के आधार पर ही फाइनल लिस्ट जारी की जाएगी।
चुनावी माहौल बनना शुरू राजनीतिक हलकों में बैठकों, पोस्टरबाजी, सोशल मीडिया प्रचार और स्थानीय कार्यक्रमों की भरमार दिखाई देने लगी है। हर नेता खुद को ‘जनप्रिय’ बताने में जुटा है। गांव-गांव जाकर जनसंपर्क अभियान भी तेज हो गए हैं।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी से कौन-कौन टिकट हासिल करता है और इस बार बिहार की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों का बिगुल बजते ही राज्य की सियासी फिजाओं में गर्माहट तेज हो गई है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों—राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों—में टिकट को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। हर विधानसभा क्षेत्र में एक नहीं, बल्कि दर्जनों नेता अपने-अपने दावेदारी के साथ मैदान में उतर आए हैं। इससे साफ है कि इस बार प्रत्याशी चयन हर पार्टी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम साबित होने वाला है।
जमीन से जुड़े नेता हों या सोशल मीडिया पर सक्रिय चेहरे—हर कोई टिकट पाने की होड़ में लगा है। कई पुराने विधायक जहां अपनी सीट दोबारा पाने के लिए जोड़-तोड़ में लगे हैं, वहीं नए और युवा नेता भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। जातीय संतुलन, क्षेत्रीय समीकरण, और जीत की संभावना जैसे कई फैक्टरों को ध्यान में रखकर पार्टियां उम्मीदवारों का चयन करेंगी।
दल बदल का दौर भी जारी चुनाव की आहट के साथ ही दल-बदल की राजनीति भी चरम पर पहुंच गई है। कई नेता जहां पार्टी से नाराज होकर दूसरी पार्टी का रुख कर रहे हैं, वहीं कुछ नेताओं को दूसरी पार्टियों से ‘ऑफर’ भी मिल रहे हैं। ऐसे में पार्टियों के लिए अपने मजबूत चेहरों को बचाए रखना भी एक बड़ी चुनौती बन गया है।
टिकट के लिए जनता से दिखावा नहीं, काम का होगा रिपोर्ट कार्ड विशेषज्ञों की मानें तो इस बार का चुनाव परफॉर्मेंस आधारित होने वाला है। पार्टियां उन चेहरों को प्राथमिकता देंगी जिनका जनता के बीच पकड़ मजबूत है और जिन्होंने क्षेत्र में विकासात्मक कार्य किए हैं। चुनावी सर्वे और फीडबैक रिपोर्ट के आधार पर ही फाइनल लिस्ट जारी की जाएगी।
चुनावी माहौल बनना शुरू राजनीतिक हलकों में बैठकों, पोस्टरबाजी, सोशल मीडिया प्रचार और स्थानीय कार्यक्रमों की भरमार दिखाई देने लगी है। हर नेता खुद को ‘जनप्रिय’ बताने में जुटा है। गांव-गांव जाकर जनसंपर्क अभियान भी तेज हो गए हैं।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी से कौन-कौन टिकट हासिल करता है और इस बार बिहार की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।
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