बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर नया विवाद सामने आया है। पटना में एक कुत्ते को ‘बाबू’ नाम से निवास प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस घटना को लेकर समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
योगेंद्र यादव ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “बिहार में SIR के तहत यह स्वीकार्य है कि एक कुत्ता प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है, लेकिन अगर कोई इंसान आधार कार्ड दिखाए, तो उसे गलत मानकर सूची से बाहर कर दिया जाता है।”
अपनी आँखों से देख लीजिए! बिहार में 24 जुलाई को एक कुत्ते ने आवास प्रमाण पत्र बनवा लिया। यह वही प्रमाणपत्र है जिसे बिहार में SIR में मान्य किया जा रहा है, जबकि आधार और राशन कार्ड को फ़र्ज़ी बताया जा रहा है। आप ख़ुद फ़ोटो और नाम जाँच लीजिए: ‘डॉग बाबू', पिता का नाम 'कुत्ता बाबू',… pic.twitter.com/ZBOvrgqIyq
उन्होंने यह टिप्पणी SIR प्रक्रिया में सामने आई कथित अनियमितताओं और पहचान सत्यापन की खामियों को उजागर करने के उद्देश्य से की है।
क्या है मामला?
दरअसल, बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत मतदाताओं की पहचान और सूची का पुनः सत्यापन किया जा रहा है। इसी प्रक्रिया में पटना नगर निगम द्वारा एक ऐसे पते पर निवास प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, जिसमें नाम दर्ज था – “डॉग बाबू”।
स्थानीय लोगों ने इसे सरकारी लापरवाही का उदाहरण बताया है और कई जगहों पर सवाल खड़े किए हैं कि जब एक पालतू जानवर को नागरिक मान लिया गया, तो कई वास्तविक नागरिकों के दस्तावेजों को खारिज कैसे किया जा रहा है?
विरोध और प्रतिक्रिया
राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे पर बयानबाज़ी तेज हो गई है। विपक्ष ने इसे प्रशासन की लापरवाही और मतदाता सूची से जानबूझकर लोगों को हटाने का प्रयास बताया है। वहीं, राज्य सरकार और चुनाव आयोग ने इस पर कोई औपचारिक सफाई नहीं दी है।
इस घटना ने SIR प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है और सोशल मीडिया पर इसे लेकर मजाक और आलोचना दोनों हो रही है।
निष्कर्ष
जहां एक ओर राज्य में लाखों मतदाताओं के नाम कथित रूप से सूची से हटाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक कुत्ते को निवासी प्रमाण पत्र जारी होना व्यवस्था की तकनीकी और प्रशासनिक खामियों को उजागर करता है। ऐसे में SIR अभियान की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर नया विवाद सामने आया है। पटना में एक कुत्ते को ‘बाबू’ नाम से निवास प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस घटना को लेकर समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
योगेंद्र यादव ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “बिहार में SIR के तहत यह स्वीकार्य है कि एक कुत्ता प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है, लेकिन अगर कोई इंसान आधार कार्ड दिखाए, तो उसे गलत मानकर सूची से बाहर कर दिया जाता है।”
अपनी आँखों से देख लीजिए! बिहार में 24 जुलाई को एक कुत्ते ने आवास प्रमाण पत्र बनवा लिया। यह वही प्रमाणपत्र है जिसे बिहार में SIR में मान्य किया जा रहा है, जबकि आधार और राशन कार्ड को फ़र्ज़ी बताया जा रहा है। आप ख़ुद फ़ोटो और नाम जाँच लीजिए: ‘डॉग बाबू', पिता का नाम 'कुत्ता बाबू',… pic.twitter.com/ZBOvrgqIyq
उन्होंने यह टिप्पणी SIR प्रक्रिया में सामने आई कथित अनियमितताओं और पहचान सत्यापन की खामियों को उजागर करने के उद्देश्य से की है।
क्या है मामला?
दरअसल, बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत मतदाताओं की पहचान और सूची का पुनः सत्यापन किया जा रहा है। इसी प्रक्रिया में पटना नगर निगम द्वारा एक ऐसे पते पर निवास प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, जिसमें नाम दर्ज था – “डॉग बाबू”।
स्थानीय लोगों ने इसे सरकारी लापरवाही का उदाहरण बताया है और कई जगहों पर सवाल खड़े किए हैं कि जब एक पालतू जानवर को नागरिक मान लिया गया, तो कई वास्तविक नागरिकों के दस्तावेजों को खारिज कैसे किया जा रहा है?
विरोध और प्रतिक्रिया
राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे पर बयानबाज़ी तेज हो गई है। विपक्ष ने इसे प्रशासन की लापरवाही और मतदाता सूची से जानबूझकर लोगों को हटाने का प्रयास बताया है। वहीं, राज्य सरकार और चुनाव आयोग ने इस पर कोई औपचारिक सफाई नहीं दी है।
इस घटना ने SIR प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है और सोशल मीडिया पर इसे लेकर मजाक और आलोचना दोनों हो रही है।
निष्कर्ष
जहां एक ओर राज्य में लाखों मतदाताओं के नाम कथित रूप से सूची से हटाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक कुत्ते को निवासी प्रमाण पत्र जारी होना व्यवस्था की तकनीकी और प्रशासनिक खामियों को उजागर करता है। ऐसे में SIR अभियान की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
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