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गांगुली नदी के कटाव से त्रस्त अपने गांव बेलवा पहुंचे अभिनेता मनोज बाजपेयी, किसानों के दर्द को सुन हुए भावुक।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से दूर, अभिनेता मनोज बाजपेयी अपने पैतृक गांव बेलवा पहुंचे, जहां उन्होंने न केवल अपनी जड़ों से जुड़ने का समय निकाला बल्कि ग्रामीणों की समस्याओं को भी करीब से जाना। शुक्रवार को वे गौनाहा प्रखंड के गम्हरिया गांव पहुंचे, जहां गांगुली नदी के भीषण कटाव से प्रभावित ग्रामीणों से मिले।

आपको बताते चलें कि मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बेलवा गांव में हुआ था। यह गांव बिहार के बेतिया शहर के करीब स्थित है।

कटाव की विनाशलीला देख हुए भावुक

गांगुली नदी का कटाव हर साल बरसात में सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि को निगल जाता है, जिससे किसानों की मेहनत मिट्टी में मिल जाती है। जब ग्रामीणों ने अपनी उजड़ती जमीन, बहते घर और टूटते सपनों की दास्तान सुनाई, तो मनोज बाजपेयी भावुक हो गए। उन्होंने खुद नदी के किनारे जाकर स्थिति का जायजा लिया और कहा—

“यह केवल नदी का कटाव नहीं है, बल्कि ग्रामीणों के सुनहरे भविष्य पर वज्रपात है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो गांव और किसान दोनों ही नक्शे से मिट जाएंगे।”

कटाव रोकने के लिए संघर्ष का संकल्प

मनोज बाजपेयी ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि वे डीएम और अन्य अधिकारियों से मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़ी, तो वे इस मुद्दे को लेकर संघर्ष भी करेंगे।

“फिल्मी दुनिया मेरी पहचान है, लेकिन यह गांव मेरी असली दुनिया है। यहां की समस्याओं को हल करना मेरा फर्ज है।”

ग्रामीणों का दर्द: हर साल उजड़ते हैं घर और खेत

गांव के भुवाली महतो, बच्चा गुरो, कमलेश गुरो, मनोज महतो, सुरेंद्र काजी सहित कई ग्रामीणों ने अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने बताया कि 2024 की बाढ़ में आधा दर्जन घर नदी में समा गए थे और हर साल हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो जाती है। उन्होंने सरकार से मजबूत तटबंध (बांध) बनवाने की मांग की।

समाधान की दिशा में ठोस कदम का वादा

मनोज बाजपेयी के साथ इस दौरे में राजनीतिज्ञ व समाजसेवी शैलेन्द्र प्रताप सिंह, शिक्षाविद ज्ञानदेव देव मणि त्रिपाठी, राकेश राव, नितेश राव, दीपेन्द्र बाजपेयी भी मौजूद रहे। सभी ने मिलकर ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि इस गंभीर समस्या को लेकर प्रशासन से ठोस कार्रवाई की मांग की जाएगी।

गांगुली नदी का कटाव महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक सामाजिक संकट है। यदि जल्द ही कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया, तो यह गांव और उसके बाशिंदे अस्तित्व की लड़ाई में अकेले पड़ जाएंगे। मनोज बाजपेयी के इस संकल्प से ग्रामीणों को नई उम्मीद जरूर मिली है, लेकिन देखना यह होगा कि प्रशासन इस पर कितना गंभीरता से कदम उठाता है।

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