बिहार की सियासत में इस बार दिलचस्प मोड़ देखने को मिला है। जिन चार विधायकों ने अपनी-अपनी पार्टियों को ऐन मौके पर या अनायास ही धोखा दिया था, अब उन्हीं पर किस्मत ने पलटी मार दी है। टिकट बंटवारे की अंतिम सूची आने के बाद इन चारों के पत्ते साफ हो गए हैं — यानि जैसे को तैसा कांड पूरा हो गया।
इनमें तीन विधायक असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से चुने गए थे। विधानसभा में कुछ ही समय बाद उन्होंने पाला बदलकर तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का दामन थाम लिया। वहीं चौथा विधायक लालू यादव का पुराना भरोसेमंद माना जाता था, लेकिन नीतीश कुमार की एनडीए सरकार के बहुमत परीक्षण के दौरान उसने अचानक ‘घर बदल’ लिया।
अब जब सीट बंटवारे की गुत्थियाँ सुलझीं, तो सभी दलों ने साफ संदेश दे दिया — “वफादारी की कीमत चुकानी पड़ती है।” पहले चरण का चुनाव हो चुका है और इन चारों नेताओं की राजनीतिक जमीन फिलहाल खिसकती नजर आ रही है। कोई निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमा रहा है, तो कोई अब तक नए सियासी ठिकाने की तलाश में भटक रहा है।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
बिहार की सियासत में इस बार दिलचस्प मोड़ देखने को मिला है। जिन चार विधायकों ने अपनी-अपनी पार्टियों को ऐन मौके पर या अनायास ही धोखा दिया था, अब उन्हीं पर किस्मत ने पलटी मार दी है। टिकट बंटवारे की अंतिम सूची आने के बाद इन चारों के पत्ते साफ हो गए हैं — यानि जैसे को तैसा कांड पूरा हो गया।
इनमें तीन विधायक असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से चुने गए थे। विधानसभा में कुछ ही समय बाद उन्होंने पाला बदलकर तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का दामन थाम लिया। वहीं चौथा विधायक लालू यादव का पुराना भरोसेमंद माना जाता था, लेकिन नीतीश कुमार की एनडीए सरकार के बहुमत परीक्षण के दौरान उसने अचानक ‘घर बदल’ लिया।
अब जब सीट बंटवारे की गुत्थियाँ सुलझीं, तो सभी दलों ने साफ संदेश दे दिया — “वफादारी की कीमत चुकानी पड़ती है।” पहले चरण का चुनाव हो चुका है और इन चारों नेताओं की राजनीतिक जमीन फिलहाल खिसकती नजर आ रही है। कोई निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमा रहा है, तो कोई अब तक नए सियासी ठिकाने की तलाश में भटक रहा है।
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