कफ सिरप पीने के बाद 22 मासूम बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस दर्दनाक घटना ने न सिर्फ अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि दवाओं की गुणवत्ता पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस मामले में गंभीर चिंता जताई है और जांच की मांग की है।
देश के एक राज्य में हाल ही में 22 बच्चों की मौत उस वक्त हुई, जब उन्हें खांसी से राहत के लिए एक ब्रांड का कफ सिरप दिया गया। पीड़ित परिवारों का कहना है कि बच्चों को सिरप देने के कुछ ही घंटों बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और अस्पताल पहुंचने से पहले ही कई बच्चों ने दम तोड़ दिया।
जांच में सामने आया है कि जिन कफ सिरप का सेवन बच्चों ने किया था, उनमें कुछ खतरनाक केमिकल्स पाए गए हैं। डायथिलीन ग्लायकॉल और एथिलीन ग्लायकॉल जैसे जहरीले तत्वों की मौजूदगी का शक है, जो किडनी फेलियर जैसी गंभीर स्थिति पैदा कर सकते हैं।
WHO की प्रतिक्रिया:
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस घटना पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार से जवाब मांगा है। WHO का कहना है कि बच्चों की मौत की जांच तेजी से की जानी चाहिए और दोषी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। संगठन ने यह भी चेतावनी दी है कि निम्न गुणवत्ता या नकली दवाओं का चलन अगर नहीं रोका गया, तो यह वैश्विक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिक्रिया:
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस मामले में उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। संबंधित कफ सिरप के सैंपल्स को जांच के लिए लैब भेजा गया है। मंत्रालय ने यह भी आश्वासन दिया है कि दोषी पाए जाने वाले फार्मा कंपनियों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने से लेकर कानूनी कार्रवाई तक की जाएगी।
जनता में बढ़ी चिंता:
इस घटना के बाद अभिभावकों के बीच भय का माहौल है। लोग अब बच्चों को कोई भी सिरप देने से पहले कई बार सोच रहे हैं। फार्मेसियों पर भी लोगों की पूछताछ बढ़ गई है कि कौन सी दवाइयाँ सुरक्षित हैं और कौन नहीं।
विशेषज्ञों की राय:
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है। बिना डॉक्टर की सलाह के सिरप देना जानलेवा हो सकता है।
निष्कर्ष:
22 मासूम जानों का जाना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है। सवाल उठता है कि दवा कंपनियों पर निगरानी कितनी कारगर है? क्या हम अपने बच्चों को सुरक्षित दवाएं दे रहे हैं? इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना अब सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
कफ सिरप पीने के बाद 22 मासूम बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस दर्दनाक घटना ने न सिर्फ अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि दवाओं की गुणवत्ता पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस मामले में गंभीर चिंता जताई है और जांच की मांग की है।
देश के एक राज्य में हाल ही में 22 बच्चों की मौत उस वक्त हुई, जब उन्हें खांसी से राहत के लिए एक ब्रांड का कफ सिरप दिया गया। पीड़ित परिवारों का कहना है कि बच्चों को सिरप देने के कुछ ही घंटों बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और अस्पताल पहुंचने से पहले ही कई बच्चों ने दम तोड़ दिया।
जांच में सामने आया है कि जिन कफ सिरप का सेवन बच्चों ने किया था, उनमें कुछ खतरनाक केमिकल्स पाए गए हैं। डायथिलीन ग्लायकॉल और एथिलीन ग्लायकॉल जैसे जहरीले तत्वों की मौजूदगी का शक है, जो किडनी फेलियर जैसी गंभीर स्थिति पैदा कर सकते हैं।
WHO की प्रतिक्रिया:
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस घटना पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार से जवाब मांगा है। WHO का कहना है कि बच्चों की मौत की जांच तेजी से की जानी चाहिए और दोषी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। संगठन ने यह भी चेतावनी दी है कि निम्न गुणवत्ता या नकली दवाओं का चलन अगर नहीं रोका गया, तो यह वैश्विक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिक्रिया:
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस मामले में उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। संबंधित कफ सिरप के सैंपल्स को जांच के लिए लैब भेजा गया है। मंत्रालय ने यह भी आश्वासन दिया है कि दोषी पाए जाने वाले फार्मा कंपनियों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने से लेकर कानूनी कार्रवाई तक की जाएगी।
जनता में बढ़ी चिंता:
इस घटना के बाद अभिभावकों के बीच भय का माहौल है। लोग अब बच्चों को कोई भी सिरप देने से पहले कई बार सोच रहे हैं। फार्मेसियों पर भी लोगों की पूछताछ बढ़ गई है कि कौन सी दवाइयाँ सुरक्षित हैं और कौन नहीं।
विशेषज्ञों की राय:
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है। बिना डॉक्टर की सलाह के सिरप देना जानलेवा हो सकता है।
निष्कर्ष:
22 मासूम जानों का जाना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है। सवाल उठता है कि दवा कंपनियों पर निगरानी कितनी कारगर है? क्या हम अपने बच्चों को सुरक्षित दवाएं दे रहे हैं? इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना अब सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है।
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