यूक्रेन-रूस युद्ध को तीन साल से ज्यादा समय हो चुका है। हजारों सैनिकों की जान जा चुकी है, देश की आधी आबादी विस्थापित हो चुकी है और बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा खंडहर में तब्दील हो गया है। इसके बावजूद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की अब भी बिना झुके एक “हीरो मोड” में नजर आते हैं—कुछ ऐसा जैसा कभी हम Netflix की राजनीतिक थ्रिलर सीरीज़ में देखते हैं।
हाल ही में रूस ने 15 मई को सीधी वार्ता का प्रस्ताव रखा है। उनकी पहल है—आइए, बातचीत करें। लेकिन यूक्रेन ने तुरंत शर्तें जोड़ दीं—पहले युद्धविराम हो, फिर वार्ता होगी।
इस जवाब ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। एक ऐसा देश जो युद्ध में बुरी तरह थक चुका है, जिसकी आधी सेना अब सक्षम नहीं बची और जहां ज़मीन पर रोज़ तबाही हो रही है—वह अब भी शर्तों के साथ वार्ता की बात कर रहा है।
यहां तक कि सोशल मीडिया पर लोग कहने लगे हैं कि “इतना कॉन्फिडेंस तो पाकिस्तान को भी नहीं आता जब वो T20 जीतकर जश्न मनाता है!” ज़ेलेंस्की के इस रुख को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं—क्या यह आत्मविश्वास है या ज़िद? क्या यह रणनीति है या खोखली उम्मीद?
रूस जहां अब सीधे संवाद की बात कर रहा है, वहीं यूक्रेन अब भी उन सिद्धांतों पर अडिग है जिनके चलते यह युद्ध शुरू हुआ था—क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और पश्चिमी समर्थन।
अब देखना होगा कि 15 मई की यह संभावित वार्ता किस दिशा में जाती है। क्या यह युद्ध के अंत की ओर पहला कदम होगा या फिर एक और ‘शर्तों भरा’ मौका यूं ही हाथ से निकल जाएगा?
सवाल अब भी वही है—शांति पहले आएगी या अहंकार पीछे हटेगा?
सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
यूक्रेन-रूस युद्ध को तीन साल से ज्यादा समय हो चुका है। हजारों सैनिकों की जान जा चुकी है, देश की आधी आबादी विस्थापित हो चुकी है और बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा खंडहर में तब्दील हो गया है। इसके बावजूद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की अब भी बिना झुके एक “हीरो मोड” में नजर आते हैं—कुछ ऐसा जैसा कभी हम Netflix की राजनीतिक थ्रिलर सीरीज़ में देखते हैं।
हाल ही में रूस ने 15 मई को सीधी वार्ता का प्रस्ताव रखा है। उनकी पहल है—आइए, बातचीत करें। लेकिन यूक्रेन ने तुरंत शर्तें जोड़ दीं—पहले युद्धविराम हो, फिर वार्ता होगी।
इस जवाब ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। एक ऐसा देश जो युद्ध में बुरी तरह थक चुका है, जिसकी आधी सेना अब सक्षम नहीं बची और जहां ज़मीन पर रोज़ तबाही हो रही है—वह अब भी शर्तों के साथ वार्ता की बात कर रहा है।
यहां तक कि सोशल मीडिया पर लोग कहने लगे हैं कि “इतना कॉन्फिडेंस तो पाकिस्तान को भी नहीं आता जब वो T20 जीतकर जश्न मनाता है!” ज़ेलेंस्की के इस रुख को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं—क्या यह आत्मविश्वास है या ज़िद? क्या यह रणनीति है या खोखली उम्मीद?
रूस जहां अब सीधे संवाद की बात कर रहा है, वहीं यूक्रेन अब भी उन सिद्धांतों पर अडिग है जिनके चलते यह युद्ध शुरू हुआ था—क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और पश्चिमी समर्थन।
अब देखना होगा कि 15 मई की यह संभावित वार्ता किस दिशा में जाती है। क्या यह युद्ध के अंत की ओर पहला कदम होगा या फिर एक और ‘शर्तों भरा’ मौका यूं ही हाथ से निकल जाएगा?
सवाल अब भी वही है—शांति पहले आएगी या अहंकार पीछे हटेगा?
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