नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान के साथ किया गया। अहले सुबह से ही शहर की सबसे पुरानी दुर्गा मंदिर बड़ी कोठी में भक्तों की भीड़ देखने को मिली। बताते चलें कि यह मंदिर शहर की सबसे प्राचीन दुर्गा मंदिर है। जानकारी के अनुसार थिरानी परिवार द्वारा वर्ष 1903 में यहां मां दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू करायी गई थी। तब से अब तक लगातार यहां पूजा होती आ रही है। बताते चलें कि यहां शारदीय नवरात्र के अलावे चैत्र नवरात्र में भी पूरे विधि विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है।
यहां बंगाल के कारिगर जयपाल दा ने मूर्ति का निर्माण किया है। कमेटी सदस्यों ने बताया कि मूर्तिकार जयपाल पिछले कई वर्षों से इस मंदिर में मूर्ति बनाते आ रहे हैं। बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में पुराने परम्परा एवं एक ही शैली से पूजा होती है और यहां मां की प्रतिमा क़ो वर्षों से एक ही रूप दिया जाता है। एक ही पुरोहित के वंशज पूजा कराते आ रहे हैं। मंदिर के सबसे पहले पुरोहित प्रगास पाण्डेय थे।
इसके बाद दूधनाथ पाण्डेय, गया प्रसाद पाण्डेय और अब इनके वंशज धंतोष पाण्डेय एवं मंतोष पाण्डेय पूजा करा रहे हैं। बताते चलें कि संध्या आरती में शामिल होने के लिए स्थानीय भक्तों सहित दूर दराज से आए लोगों की भी काफी भीड़ लगी रहती है। यहां पूजा के लिए चंदा नहीं ली जाती है। मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तों के सहयोग से धूमधाम से पूजा की जाती है।
सारस न्यूज टीम, किशनगंज।
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान के साथ किया गया। अहले सुबह से ही शहर की सबसे पुरानी दुर्गा मंदिर बड़ी कोठी में भक्तों की भीड़ देखने को मिली। बताते चलें कि यह मंदिर शहर की सबसे प्राचीन दुर्गा मंदिर है। जानकारी के अनुसार थिरानी परिवार द्वारा वर्ष 1903 में यहां मां दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू करायी गई थी। तब से अब तक लगातार यहां पूजा होती आ रही है। बताते चलें कि यहां शारदीय नवरात्र के अलावे चैत्र नवरात्र में भी पूरे विधि विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है।
यहां बंगाल के कारिगर जयपाल दा ने मूर्ति का निर्माण किया है। कमेटी सदस्यों ने बताया कि मूर्तिकार जयपाल पिछले कई वर्षों से इस मंदिर में मूर्ति बनाते आ रहे हैं। बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में पुराने परम्परा एवं एक ही शैली से पूजा होती है और यहां मां की प्रतिमा क़ो वर्षों से एक ही रूप दिया जाता है। एक ही पुरोहित के वंशज पूजा कराते आ रहे हैं। मंदिर के सबसे पहले पुरोहित प्रगास पाण्डेय थे।
इसके बाद दूधनाथ पाण्डेय, गया प्रसाद पाण्डेय और अब इनके वंशज धंतोष पाण्डेय एवं मंतोष पाण्डेय पूजा करा रहे हैं। बताते चलें कि संध्या आरती में शामिल होने के लिए स्थानीय भक्तों सहित दूर दराज से आए लोगों की भी काफी भीड़ लगी रहती है। यहां पूजा के लिए चंदा नहीं ली जाती है। मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तों के सहयोग से धूमधाम से पूजा की जाती है।
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