पोठिया बाजार का सार्वजनिक दुर्गा मंदिर मनोकामना सिद्धि के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर अपनी अलौकिक शक्ति के लिए दूर-दूराज के इलाकों तक प्रसिद्ध है। नवरात्रा में पश्चिम बंगाल, बिहार सहित पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालु इस मंदिर में मन्नत मांगने पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होने पर मंदिर में लोग अपनी क्षमता के अनुरूप दान चढ़ाते हैं।
यही कारण है की 1954 से प्रारम्भ हुई दुर्गा पूजा में आज तक पूजा समिति को प्रतिमा नहीं लानी पड़ी बल्कि हर वर्ष श्रद्धालु द्वारा मां की प्रतिमा दी जाती है। बताया जाता है कि यहां कभी बलि देने की प्रथा नहीं रही है। नवरात्रा के समय इस मंदिर में खास पूजा एवं मेले का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष पोठिया सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के प्रांगण में विजया दशमी के दिन संथाली नृत्य का आयोजन किया जाता है। नवरात्रा के समय मंदिर में बंगाल, बिहार और झारखंड से आदिवासी नृत्य की टीम पहुंचती है तथा प्रस्तुति के लिए यहां भीड़ लगती है।
अष्टभुजी मां की संगमरमर निर्मित भव्य प्रतिमा स्थापित पोठिया के सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में पहली बार वर्ष 1954 में पुरोहित स्वर्गीय अवध नारायण झा व घियांगांव निवासी स्वर्गीय अतबलाल ने एक साथ मिलकर फुस व सन्ठी से मन्दिर निर्माण कर पूजा की नींव रखी थी।
जिसके बाद वर्ष 1963 में सामाजिक स्तर से दुर्गा मंदिर का छत डालकर मंदिर बनाई गई। पुनः 2008 में पुराने मंदिर को तोड़कर नए सिरे से भव्य व सुंदर मंदिर का निर्माण किया गया। वर्ष 2012 में अष्टभुजी मां की संगमरमर निर्मित भव्य प्रतिमा स्थापित की गई। जिसकी सालोंभर पुजारी अभय झा द्वारा पूजा होती है। यहां नवरात्रि पर दुर्गा सप्तशति के अखंड पाठ के साथ-साथ अखंड ज्योत जलती रहती है।
सारस न्यूज टीम, पोठिया।
पोठिया बाजार का सार्वजनिक दुर्गा मंदिर मनोकामना सिद्धि के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर अपनी अलौकिक शक्ति के लिए दूर-दूराज के इलाकों तक प्रसिद्ध है। नवरात्रा में पश्चिम बंगाल, बिहार सहित पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालु इस मंदिर में मन्नत मांगने पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होने पर मंदिर में लोग अपनी क्षमता के अनुरूप दान चढ़ाते हैं।
यही कारण है की 1954 से प्रारम्भ हुई दुर्गा पूजा में आज तक पूजा समिति को प्रतिमा नहीं लानी पड़ी बल्कि हर वर्ष श्रद्धालु द्वारा मां की प्रतिमा दी जाती है। बताया जाता है कि यहां कभी बलि देने की प्रथा नहीं रही है। नवरात्रा के समय इस मंदिर में खास पूजा एवं मेले का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष पोठिया सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के प्रांगण में विजया दशमी के दिन संथाली नृत्य का आयोजन किया जाता है। नवरात्रा के समय मंदिर में बंगाल, बिहार और झारखंड से आदिवासी नृत्य की टीम पहुंचती है तथा प्रस्तुति के लिए यहां भीड़ लगती है।
अष्टभुजी मां की संगमरमर निर्मित भव्य प्रतिमा स्थापित पोठिया के सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में पहली बार वर्ष 1954 में पुरोहित स्वर्गीय अवध नारायण झा व घियांगांव निवासी स्वर्गीय अतबलाल ने एक साथ मिलकर फुस व सन्ठी से मन्दिर निर्माण कर पूजा की नींव रखी थी।
जिसके बाद वर्ष 1963 में सामाजिक स्तर से दुर्गा मंदिर का छत डालकर मंदिर बनाई गई। पुनः 2008 में पुराने मंदिर को तोड़कर नए सिरे से भव्य व सुंदर मंदिर का निर्माण किया गया। वर्ष 2012 में अष्टभुजी मां की संगमरमर निर्मित भव्य प्रतिमा स्थापित की गई। जिसकी सालोंभर पुजारी अभय झा द्वारा पूजा होती है। यहां नवरात्रि पर दुर्गा सप्तशति के अखंड पाठ के साथ-साथ अखंड ज्योत जलती रहती है।
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