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बिंदु अग्रवाल की कविता #84 ( शीर्षक- रूठी क्यों दुखहरणी माता)।

सारस न्यूज, वेब डेस्क।

रूठी क्यों दुखहरणी माता

रूठी क्यों दुखहरणी माता
कैसे मैं तुझे मानाऊँ?
कैसी विकट प्रतीक्षा की है
कैसे मैं तुझे बताऊँ?

न जानूँ मैं जप तप ध्याना
कैसे तुझे रिझाऊँ?
मुझमें नहीं है धैर्य राम सा
राजीव नयन चढ़ाऊं।

कष्ट भरा है मेरा जीवन
तुमसे अरदास लगाऊँ।
मै शबरी–सी भक्त नहीं हूँ,
चख- चख बैर खिलाऊं।

न जानूँ मैं दिया बाती
कैसे दीप जलाऊँ?
नैनन की दो बाती मैया
निश दिन जोत जलाऊँ।

मै पाहन अहिल्या जैसी
तेरे चरणों में बिछ जाऊँ।
हो तेरी कृपा दृष्टि तो
भव सागर तर जाऊँ।

बिंदु अग्रवाल (शिक्षिका, मध्य विद्यालय गलगलिया किशनगंज बिहार)।

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