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किशनगंज: सियासी जड़ता में बदलाव की तलाश, कांग्रेस के गढ़ में मुकाबला।

सारस न्यूज, वेब डेस्क।

सीमांचल की राजनीति में खास पहचान रखने वाला किशनगंज विधानसभा क्षेत्र इस बार फिर सुर्खियों में है। सामाजिक, भौगोलिक और राजनीतिक विविधता से भरपूर इस क्षेत्र में जहां मिट्टी उर्वर है, वहीं सियासी जमीन भी हमेशा गर्म रहती है। यहां का मिजाज, आबोहवा और चुनावी रुझान इसे बिहार की बाकी सीटों से अलग बनाते हैं।

कांग्रेस के लिए यह सीट अब तक का मजबूत गढ़ रही है। अब तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो किशनगंज विधानसभा में कांग्रेस को सबसे अधिक बार जीत हासिल हुई है, जो इसकी जमीनी पकड़ को दर्शाता है। लेकिन पिछले तीन चुनावों में जीत और हार का अंतर लगातार कम होता गया है, जो कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी भी है।

सियासी समीकरणों की नई तस्वीर

महागठबंधन की बात करें तो इस बार भी कांग्रेस को यह सीट दिए जाने की प्रबल संभावना है। दूसरी ओर, एनडीए की ओर से भारतीय जनता पार्टी ने यहां जीत भले न दर्ज की हो, लेकिन वह लगातार चुनौती देती रही है। भाजपा इस बार और आक्रामक रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है।

वहीं, एआईएमआईएम (AIMIM) ने भी अपनी दावेदारी मजबूत कर दी है। पार्टी प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदउद्दीन ओवैसी मंगलवार देर शाम किशनगंज पहुंचे, जिससे यह साफ हो गया है कि एमआईएम इस सीट को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।

नई ताकतों की एंट्री

इस बार मुकाबले को और दिलचस्प बना रही है जन सुराज पार्टी की एंट्री। पार्टी ने बेलवा में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में भारी भीड़ जुटाकर अपनी सियासी मौजूदगी और इरादों का खुलासा कर दिया है। इससे स्पष्ट है कि इस बार मुकाबला बहुकोणीय होने जा रहा है।

क्या रहेगा समीकरण?

कांग्रेस को जहां अपनी परंपरागत पकड़ बचाए रखने के लिए ‘आर-पार की लड़ाई’ लड़नी होगी, वहीं भाजपा, एमआईएम और जन सुराज जैसी ताकतें इस सीट को हथियाने की पूरी कोशिश में हैं। ऐसे में किशनगंज विधानसभा एक बार फिर बिहार की सबसे हॉट सीटों में शुमार हो चुका है।

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