शुक्रवार को नगर परिषद काजलामनी आदिवासी टोला में आदिवासी सेंगेल अभियान के बैनर तले, जिला अध्यक्ष राजा मरांडी की अध्यक्षता में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया।
इस अवसर पर उपस्थित बिहार पोनोत परगाना जवाहर हेम्ब्रम ने सभा को संबोधित करते हुए विश्व आदिवासी दिवस पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त 1994 को इस दिवस की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य देश-दुनिया में बदहाल आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, संवर्धन और संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
यह दिवस केवल नाचने-गाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, और हिस्सेदारी के संवैधानिक मूल अधिकारों की रक्षा करने का उद्देश्य रखता है। हालांकि, झारखंड सहित देश-दुनिया में आदिवासियों की स्थिति अब भी बदहाल है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में सर्वप्रथम आदिवासियों के मानवीय अधिकारों पर चर्चा की थी।
आदिवासी भाषाओं को खतरा
इसी क्रम में, 13 सितंबर 2007 को यूएन ने आदिवासी अधिकार घोषणा-पत्र भी जारी किया। दुनिया की लगभग 7,000 भाषाओं में से 40 प्रतिशत भाषाएं विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं, जिसमें सबसे अधिक आदिवासी भाषाएं हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मान्यता प्राप्त संथाली भाषा को अब तक केंद्र और राज्य सरकार की ओर से व्यापक रूप में समर्थन नहीं मिला है। यूएन ने आदिवासी भाषा दशक (2022 से 2032) भी घोषित किया है, ताकि इन भाषाओं का संरक्षण हो सके।
देशभर के आदिवासी नशापान, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, राजनीतिक कुपोषण और आपसी समन्वय की कमी से जूझ रहे हैं। देश में आदिवासी (एसटी) के आरक्षण कोटे से 47 आदिवासी सांसद और 553 आदिवासी विधायक हैं, लेकिन कई आदिवासी नेता आदिवासियों के हितों के संरक्षण के लिए आवाज उठाने को तैयार नहीं हैं।
1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने एससी-एसटी आरक्षण के उप-वर्गीकरण पर रोक लगा दी है। नई जातियों को एसटी सूची में शामिल करने के दरवाजे को अगले 30 वर्षों तक बंद कर देना चाहिए ताकि पहले से एसटी सूची में शामिल आदिवासियों की स्थिति की समीक्षा की जा सके और उनके भविष्य के लिए एक मजबूत रोडमैप तैयार किया जा सके।
अतः 2024 का विश्व आदिवासी दिवस भारत और झारखंड के आदिवासियों के लिए केवल नाचने-गाने का अवसर नहीं है, बल्कि अपने अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी की रक्षा के लिए एकजुट होकर संकल्प लेने का आखिरी मौका है।
प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अनुच्छेद 25 के तहत सरना धर्म कोड की मान्यता दी जानी चाहिए। आदिवासियों की मंझही परगाना व्यवस्था में सुधार हेतु जनतंत्र और संविधान लागू किया जाए। सीएनटी और एसपीटी एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए। कुर्मी और अन्य जातियों को आदिवासी बनने से रोका जाए क्योंकि उनकी भाषा, संस्कृति, और परंपराएं भिन्न हैं। असम और अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया जाए।
इस मौके पर सरकार मुर्मू, सोम किस्कू, ठाकुर सोरेन, बुधू किस्कू, होपना सोरेन, कान्तो किस्कू, सुकला बेसरा, रमेश हांसदा सहित अन्य महिला और पुरुष उपस्थित थे।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
शुक्रवार को नगर परिषद काजलामनी आदिवासी टोला में आदिवासी सेंगेल अभियान के बैनर तले, जिला अध्यक्ष राजा मरांडी की अध्यक्षता में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया।
इस अवसर पर उपस्थित बिहार पोनोत परगाना जवाहर हेम्ब्रम ने सभा को संबोधित करते हुए विश्व आदिवासी दिवस पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त 1994 को इस दिवस की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य देश-दुनिया में बदहाल आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, संवर्धन और संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
यह दिवस केवल नाचने-गाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, और हिस्सेदारी के संवैधानिक मूल अधिकारों की रक्षा करने का उद्देश्य रखता है। हालांकि, झारखंड सहित देश-दुनिया में आदिवासियों की स्थिति अब भी बदहाल है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में सर्वप्रथम आदिवासियों के मानवीय अधिकारों पर चर्चा की थी।
आदिवासी भाषाओं को खतरा
इसी क्रम में, 13 सितंबर 2007 को यूएन ने आदिवासी अधिकार घोषणा-पत्र भी जारी किया। दुनिया की लगभग 7,000 भाषाओं में से 40 प्रतिशत भाषाएं विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं, जिसमें सबसे अधिक आदिवासी भाषाएं हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मान्यता प्राप्त संथाली भाषा को अब तक केंद्र और राज्य सरकार की ओर से व्यापक रूप में समर्थन नहीं मिला है। यूएन ने आदिवासी भाषा दशक (2022 से 2032) भी घोषित किया है, ताकि इन भाषाओं का संरक्षण हो सके।
देशभर के आदिवासी नशापान, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, राजनीतिक कुपोषण और आपसी समन्वय की कमी से जूझ रहे हैं। देश में आदिवासी (एसटी) के आरक्षण कोटे से 47 आदिवासी सांसद और 553 आदिवासी विधायक हैं, लेकिन कई आदिवासी नेता आदिवासियों के हितों के संरक्षण के लिए आवाज उठाने को तैयार नहीं हैं।
1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने एससी-एसटी आरक्षण के उप-वर्गीकरण पर रोक लगा दी है। नई जातियों को एसटी सूची में शामिल करने के दरवाजे को अगले 30 वर्षों तक बंद कर देना चाहिए ताकि पहले से एसटी सूची में शामिल आदिवासियों की स्थिति की समीक्षा की जा सके और उनके भविष्य के लिए एक मजबूत रोडमैप तैयार किया जा सके।
अतः 2024 का विश्व आदिवासी दिवस भारत और झारखंड के आदिवासियों के लिए केवल नाचने-गाने का अवसर नहीं है, बल्कि अपने अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी की रक्षा के लिए एकजुट होकर संकल्प लेने का आखिरी मौका है।
प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अनुच्छेद 25 के तहत सरना धर्म कोड की मान्यता दी जानी चाहिए। आदिवासियों की मंझही परगाना व्यवस्था में सुधार हेतु जनतंत्र और संविधान लागू किया जाए। सीएनटी और एसपीटी एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए। कुर्मी और अन्य जातियों को आदिवासी बनने से रोका जाए क्योंकि उनकी भाषा, संस्कृति, और परंपराएं भिन्न हैं। असम और अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया जाए।
इस मौके पर सरकार मुर्मू, सोम किस्कू, ठाकुर सोरेन, बुधू किस्कू, होपना सोरेन, कान्तो किस्कू, सुकला बेसरा, रमेश हांसदा सहित अन्य महिला और पुरुष उपस्थित थे।
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