ठाकुरगंज के जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व पर शुक्रवार को श्रावक-श्राविकाएं, सोलहकारण और जिनेंद्र प्रभु की पूजा कर भक्तजन प्रभु की भक्ति में लीन रहे। प्रभु आरती में भक्तों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। भक्तों के कदम खुद ही नृत्य करने को थिरक उठे। श्रद्धालुओं ने उत्तम आर्जव धर्म की पूजा की। जैन मंदिर में पंडित सुदेश जैन शास्त्री ने उत्तम आर्जव धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरलता की परिणति का नाम आर्जव धर्म है। मन में हो सो वचन उचरिये, वचन हो सो तन सो करिये, अर्थात जैसा मन में हो वैसा ही कहना चाहिए और जो मन में हो वैसा करो। ‘ऋजोर्भावः आर्जवम्’ ऋजुता अर्थात सरलता का नाम आर्जव है।
आर्जव का विपरित माया है। जो प्राणी मन, वचन, काय से कुटिलता न रखता हो वही आर्जव धर्म को पाल सकता है। अर्थात महात्माओं का कार्य मन, वचन और काय से एक होता है तथा दुरात्माओं के मन में कुछ और होता है, वचन में कुछ और बोलते हैं तथा कार्य में कुछ अन्य आचरण करते हैं। दुनिया में जितने भी अनर्थ और पापकर्म होते हैं। वे सब आर्जव धर्म के अभाव में ही होते हैं। जो ऋजु होते हैं। उनके कर्म संस्कार क्षय होते है और जो कुटिल होते हैं। उनके कर्म संस्कार संचित रहते हैं। अत्यधिक छल से उपार्जित की हुई सम्पति अधिक दिन तक स्थिर नहीं रहती है। केवल कर्म बंध होता है। चोर, डाकू आदि में कपट की मात्र अधिक रहती है।
लाखों की सम्पत्ति उनके पास आती है। किंतु कभी भी उनका नगर बसा हुआ नहीं देखाा गया है। जो व्यक्ति सरल स्वभावी होता है। उसके घर प्रभूत सम्पत्ति होती है। मायाचारी को दुनिया घृणित दृष्टि से देखती है। हंस और बगुला लगभग एक से लगते हैं। किंतु उन दोनों के स्वभाव में बडा अंतर होता है। यही कारण है कि हंस से लोग प्रेम करते हैं और बगुले से द्वेष करते हैं।
सारस न्यूज टीम, ठाकुरगंज।
ठाकुरगंज के जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व पर शुक्रवार को श्रावक-श्राविकाएं, सोलहकारण और जिनेंद्र प्रभु की पूजा कर भक्तजन प्रभु की भक्ति में लीन रहे। प्रभु आरती में भक्तों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। भक्तों के कदम खुद ही नृत्य करने को थिरक उठे। श्रद्धालुओं ने उत्तम आर्जव धर्म की पूजा की। जैन मंदिर में पंडित सुदेश जैन शास्त्री ने उत्तम आर्जव धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरलता की परिणति का नाम आर्जव धर्म है। मन में हो सो वचन उचरिये, वचन हो सो तन सो करिये, अर्थात जैसा मन में हो वैसा ही कहना चाहिए और जो मन में हो वैसा करो। ‘ऋजोर्भावः आर्जवम्’ ऋजुता अर्थात सरलता का नाम आर्जव है।
आर्जव का विपरित माया है। जो प्राणी मन, वचन, काय से कुटिलता न रखता हो वही आर्जव धर्म को पाल सकता है। अर्थात महात्माओं का कार्य मन, वचन और काय से एक होता है तथा दुरात्माओं के मन में कुछ और होता है, वचन में कुछ और बोलते हैं तथा कार्य में कुछ अन्य आचरण करते हैं। दुनिया में जितने भी अनर्थ और पापकर्म होते हैं। वे सब आर्जव धर्म के अभाव में ही होते हैं। जो ऋजु होते हैं। उनके कर्म संस्कार क्षय होते है और जो कुटिल होते हैं। उनके कर्म संस्कार संचित रहते हैं। अत्यधिक छल से उपार्जित की हुई सम्पति अधिक दिन तक स्थिर नहीं रहती है। केवल कर्म बंध होता है। चोर, डाकू आदि में कपट की मात्र अधिक रहती है।
लाखों की सम्पत्ति उनके पास आती है। किंतु कभी भी उनका नगर बसा हुआ नहीं देखाा गया है। जो व्यक्ति सरल स्वभावी होता है। उसके घर प्रभूत सम्पत्ति होती है। मायाचारी को दुनिया घृणित दृष्टि से देखती है। हंस और बगुला लगभग एक से लगते हैं। किंतु उन दोनों के स्वभाव में बडा अंतर होता है। यही कारण है कि हंस से लोग प्रेम करते हैं और बगुले से द्वेष करते हैं।
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