किशनगंज मुख्यालय के हलीम चौक स्थित काली मंदिर प्रांगण में संत शिरोमणि रविदास की जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर संत रविदास जी के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए तथा उनकी जीवन गाथा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।
चंद्र किशोर राम ने कहा कि संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार माघ पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है। वे धार्मिक प्रवृत्ति के दयालु एवं परोपकारी संत थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज कल्याण एवं मार्गदर्शन में व्यतीत किया। वे भक्तिकाल के संत और महान समाज सुधारक थे।
उन्होंने आगे कहा कि संत रविदास जी की शिक्षाएं आज भी समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्हें रैदास, गुरु रविदास और रोहिदास नामों से भी जाना जाता है। संत रविदास जी ने कहा था कि व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा या छोटा नहीं होता, बल्कि वह अपने गुणों और कर्मों से बड़ा या छोटा बनता है। वे वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे और मानते थे कि सभी मनुष्य प्रभु की संतान हैं, उनकी कोई जाति नहीं होती।
उन्होंने आगे कहा कि संत रविदास जी कर्म को प्रधानता देते थे। उनका कहना था कि व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना कर्म करना चाहिए, क्योंकि सच्ची श्रद्धा और कर्म ही सफलता दिलाते हैं। संत रविदास जी ने कहा था—
“मन चंगा तो कठौती में गंगा, का मथुरा का द्वारका, का काशी का हरिद्वार। रैदास खोजा दिल आपना, तउ मिलिया दिलदार।”
इस अवसर पर दीपक राम, ओम शर्मा, गुलशन राम सहित दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
किशनगंज मुख्यालय के हलीम चौक स्थित काली मंदिर प्रांगण में संत शिरोमणि रविदास की जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर संत रविदास जी के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए तथा उनकी जीवन गाथा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।
चंद्र किशोर राम ने कहा कि संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार माघ पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है। वे धार्मिक प्रवृत्ति के दयालु एवं परोपकारी संत थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज कल्याण एवं मार्गदर्शन में व्यतीत किया। वे भक्तिकाल के संत और महान समाज सुधारक थे।
उन्होंने आगे कहा कि संत रविदास जी की शिक्षाएं आज भी समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्हें रैदास, गुरु रविदास और रोहिदास नामों से भी जाना जाता है। संत रविदास जी ने कहा था कि व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा या छोटा नहीं होता, बल्कि वह अपने गुणों और कर्मों से बड़ा या छोटा बनता है। वे वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे और मानते थे कि सभी मनुष्य प्रभु की संतान हैं, उनकी कोई जाति नहीं होती।
उन्होंने आगे कहा कि संत रविदास जी कर्म को प्रधानता देते थे। उनका कहना था कि व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना कर्म करना चाहिए, क्योंकि सच्ची श्रद्धा और कर्म ही सफलता दिलाते हैं। संत रविदास जी ने कहा था—
“मन चंगा तो कठौती में गंगा, का मथुरा का द्वारका, का काशी का हरिद्वार। रैदास खोजा दिल आपना, तउ मिलिया दिलदार।”
इस अवसर पर दीपक राम, ओम शर्मा, गुलशन राम सहित दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
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