पुराने सुरजापुर परगना यानी किशनगंज सहित बिहार व पश्चिम बंगाल के निकटवर्ती क्षेत्रों में सूर्योपासना की प्राचीनतम परम्परा रही है और इसका प्रमाण किशनगंज जिला अंतर्गत बड़ीजान में मिली पालवंशकालीन सूर्य प्रतिमा और सूर्य मंदिर के यत्र तत्र बिखरे भग्नावेश हैं। कदाचित सूर्योपासना की परम्परा के कारण ही इस क्षेत्र का नामकरण सुरजापुर हुआ था और यहां की सुरजापूरी बोली का नामकरण भी संभवतया इसी क्षेत्र की प्राचीनतम सूर्योपासना परम्परा, सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा है।
जिले के कोचाधामन प्रखंड अंतर्गत बड़ीजान गावं में करीब 37 वर्ष पहले पुरात्वत्विक महत्व की सूर्य प्रतिमा व सूर्य मंदिर के भग्नावेश मिले थे। जहां ग्रामीणों ने बड़ीजान हाट में पीपल वृक्ष के नीचे सूर्य प्रतिमा को स्थापित कर दिये हैं। वहीँ प्रतिमा की ऊंचाई लगभग साढ़े पांच फुट तथा चौड़ाई लगभग तीन फुट है। काले बेसाल्ट पत्थर से निर्मित सात घोड़ों पर सवार भगवान भास्कर की इस प्रतिमा के पैर घुटनो तक जूतों से ढके हुए हैं तथा कमर में कटार लटकी हुई है। गले में मनकों की माला व चन्द्रहार पहने हुए भगवान सूर्य की प्रतिमा अन्य कई आभूषणों से अलंकृत है। यही नहीं बड़ीजान गावं के आसपास प्रस्तर से निर्मित मंदिर के प्रवेश द्वार का भग्नावेश पड़ा है। प्रवेश द्वार के भग्नावेश के शीर्ष पर आदिदेव गणेश की प्रतिमा उकेरी गयी है। वहीँ अन्य शिलाखंड, प्राचीन कालीन ईंट, नक्काशीदार पत्थर व पत्थरों पर उकेरी गयी देवी देवताओ की प्रतिमायें भी चीख चीख कर यही कह रही है की बड़ीजान के भू-गर्भ में प्राचीन भारत के किसी अन्यतम सूर्य मंदिर व किसी सूर्यवंशी राजा के महल का इतिहास दफन है। वहीँ लिंग पुराण के अध्याय 51 के श्लोक 27-30 में कंकदा नदी का उल्लेख मिलता है, जिसके दक्षिणी पूर्वी कोण में विविध पशु – पक्षियों व जीव जंतुओं से भरा एक घना जंगल था। यहां सदाशिव निवास किया करते थे। घने जगलों में सदाशिव अपने गुणों के कारण पूजित थे। कोचाधामन प्रखंड क्षेत्र में बहने वाली कनकई नदी उसी पौराणिक कंकदा नदी से जुड़ी मानी जाती है।
किंवदतियों, जनश्रुतियों व इतिहासकारों के अनुसार राजा वेणु के वंशज ने बड़ीजान में एक किला बनवाया था जिसमे करीब 28 तालाब थे। जहां ये सारे तालाब एक ही रात में खोदे गए थे। संप्रीति बड़ीजान के आसपास चार तालाब विद्यमान बताये जाते हैं। अंग्रेज इतिहासकार फ्रांसीस बुकानन ने भी अपनी पुस्तक में बड़ीजान गावं का उल्लेख किया है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है की बड़ीजान गावं लोनसबरी नामक एक बरसाती नदी के निकट बसा है। यह नदी प्राचीन छार नदी का किनारा है। इस गावं को बड़ीजान दुर्गापुर भी कहा गया है।
वहीँ वर्ष 2002-03 में तत्कालीन भवन निर्माण मंत्री स्व. तस्लीमुद्दीन की पहल पर पुरातत्व विभाग की टीम ने बड़ीजान गावं का सर्वेक्षण किया था। तब पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने भी निरक्षोपरांत सूर्यदेव की मूर्ति होने की पुष्टि करते हुए इसे आठवीं शताब्दी व पालवंशकालीन होने की संभावना व्यक्त की थी। वहीँ विभाग ने यहां खुदाई का प्रस्ताव भी दिया था। इसी क्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी के सेंथिल कुमार ने एक पत्र जारी कर मूर्ति व भग्नाशेष वाले भूखंड को सुरक्षित क्षेत्र घोषित करने का निर्देश जारी किया था। परंतु बड़ीजान में न तो खुदाई हुई और न ही सूर्य प्रतिमा व मंदिर के भग्नाशेष का समुचित संरक्षण हो पाया। वहीँ इसके विपरीत यहां तेजी से अतिक्रमण हो रहा है और मंदिर के भग्नाशेश भी गायब होते जा रहे हैं। जहां इसके आसपास कई दुकान बन चुके हैं। वहीँ कई लोग अपनी रैयती जमीन होने का दावा कर मकान निर्माण कार्य भी कर रहे हैं। अवैध तरीके से खुदाई कर ईंटों व पत्थरों को भी निकाला जा रहा है। जानकार बताते हैं कि यदि बड़ीजान में सरकारी स्तर पर पुरातत्व विभाग खुदाई करें तो ओडिशा के कोणार्क मंदिर की मानिंद किशनगंज में भी विशाल व भव्य सूर्य मंदिर की पौराणिक इतिहास लोगों के सामने उजागर हो सकती है। इसके साथ ही पर्यटन की असीम सम्भावनाये भी बन सकती है।
देवाशीष चटर्जी, सारस न्यूज, बहादुरगंज।
पुराने सुरजापुर परगना यानी किशनगंज सहित बिहार व पश्चिम बंगाल के निकटवर्ती क्षेत्रों में सूर्योपासना की प्राचीनतम परम्परा रही है और इसका प्रमाण किशनगंज जिला अंतर्गत बड़ीजान में मिली पालवंशकालीन सूर्य प्रतिमा और सूर्य मंदिर के यत्र तत्र बिखरे भग्नावेश हैं। कदाचित सूर्योपासना की परम्परा के कारण ही इस क्षेत्र का नामकरण सुरजापुर हुआ था और यहां की सुरजापूरी बोली का नामकरण भी संभवतया इसी क्षेत्र की प्राचीनतम सूर्योपासना परम्परा, सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा है।
जिले के कोचाधामन प्रखंड अंतर्गत बड़ीजान गावं में करीब 37 वर्ष पहले पुरात्वत्विक महत्व की सूर्य प्रतिमा व सूर्य मंदिर के भग्नावेश मिले थे। जहां ग्रामीणों ने बड़ीजान हाट में पीपल वृक्ष के नीचे सूर्य प्रतिमा को स्थापित कर दिये हैं। वहीँ प्रतिमा की ऊंचाई लगभग साढ़े पांच फुट तथा चौड़ाई लगभग तीन फुट है। काले बेसाल्ट पत्थर से निर्मित सात घोड़ों पर सवार भगवान भास्कर की इस प्रतिमा के पैर घुटनो तक जूतों से ढके हुए हैं तथा कमर में कटार लटकी हुई है। गले में मनकों की माला व चन्द्रहार पहने हुए भगवान सूर्य की प्रतिमा अन्य कई आभूषणों से अलंकृत है। यही नहीं बड़ीजान गावं के आसपास प्रस्तर से निर्मित मंदिर के प्रवेश द्वार का भग्नावेश पड़ा है। प्रवेश द्वार के भग्नावेश के शीर्ष पर आदिदेव गणेश की प्रतिमा उकेरी गयी है। वहीँ अन्य शिलाखंड, प्राचीन कालीन ईंट, नक्काशीदार पत्थर व पत्थरों पर उकेरी गयी देवी देवताओ की प्रतिमायें भी चीख चीख कर यही कह रही है की बड़ीजान के भू-गर्भ में प्राचीन भारत के किसी अन्यतम सूर्य मंदिर व किसी सूर्यवंशी राजा के महल का इतिहास दफन है। वहीँ लिंग पुराण के अध्याय 51 के श्लोक 27-30 में कंकदा नदी का उल्लेख मिलता है, जिसके दक्षिणी पूर्वी कोण में विविध पशु – पक्षियों व जीव जंतुओं से भरा एक घना जंगल था। यहां सदाशिव निवास किया करते थे। घने जगलों में सदाशिव अपने गुणों के कारण पूजित थे। कोचाधामन प्रखंड क्षेत्र में बहने वाली कनकई नदी उसी पौराणिक कंकदा नदी से जुड़ी मानी जाती है।
किंवदतियों, जनश्रुतियों व इतिहासकारों के अनुसार राजा वेणु के वंशज ने बड़ीजान में एक किला बनवाया था जिसमे करीब 28 तालाब थे। जहां ये सारे तालाब एक ही रात में खोदे गए थे। संप्रीति बड़ीजान के आसपास चार तालाब विद्यमान बताये जाते हैं। अंग्रेज इतिहासकार फ्रांसीस बुकानन ने भी अपनी पुस्तक में बड़ीजान गावं का उल्लेख किया है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है की बड़ीजान गावं लोनसबरी नामक एक बरसाती नदी के निकट बसा है। यह नदी प्राचीन छार नदी का किनारा है। इस गावं को बड़ीजान दुर्गापुर भी कहा गया है।
वहीँ वर्ष 2002-03 में तत्कालीन भवन निर्माण मंत्री स्व. तस्लीमुद्दीन की पहल पर पुरातत्व विभाग की टीम ने बड़ीजान गावं का सर्वेक्षण किया था। तब पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने भी निरक्षोपरांत सूर्यदेव की मूर्ति होने की पुष्टि करते हुए इसे आठवीं शताब्दी व पालवंशकालीन होने की संभावना व्यक्त की थी। वहीँ विभाग ने यहां खुदाई का प्रस्ताव भी दिया था। इसी क्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी के सेंथिल कुमार ने एक पत्र जारी कर मूर्ति व भग्नाशेष वाले भूखंड को सुरक्षित क्षेत्र घोषित करने का निर्देश जारी किया था। परंतु बड़ीजान में न तो खुदाई हुई और न ही सूर्य प्रतिमा व मंदिर के भग्नाशेष का समुचित संरक्षण हो पाया। वहीँ इसके विपरीत यहां तेजी से अतिक्रमण हो रहा है और मंदिर के भग्नाशेश भी गायब होते जा रहे हैं। जहां इसके आसपास कई दुकान बन चुके हैं। वहीँ कई लोग अपनी रैयती जमीन होने का दावा कर मकान निर्माण कार्य भी कर रहे हैं। अवैध तरीके से खुदाई कर ईंटों व पत्थरों को भी निकाला जा रहा है। जानकार बताते हैं कि यदि बड़ीजान में सरकारी स्तर पर पुरातत्व विभाग खुदाई करें तो ओडिशा के कोणार्क मंदिर की मानिंद किशनगंज में भी विशाल व भव्य सूर्य मंदिर की पौराणिक इतिहास लोगों के सामने उजागर हो सकती है। इसके साथ ही पर्यटन की असीम सम्भावनाये भी बन सकती है।
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