खुद को यूँ पाला है मैंने
कल्पनाओं के भवँर में डूब कर
एक मोती निकाला है मैंने,
बीते हुए लम्हों को फिर से
पुकारा है मैंने।
बातें कुछ अधकहि सी थी,
कहानी कुछ अनसुनी सी थी
अपने जीवन के सपनों को
हकीकत में ढाला है मैंने।
लोग अक्सर डर जाते हैं
हवा के हल्के झोकों से,
तूफानों से लड़ कर खुद को
यूँ पाला है मैंने।
आसान नही थे रास्ते
जीवन संघर्ष की राहों के।
हर हादसों से लड़ कर खुद को
हर परिस्थिति में ढाला है मैंने।
लोग परेशान होते हैं
मेरी मुस्कान को देख कर,
उन्हें क्या पता,आती हुई मौत को
कैसे टाला है मैंने।
बिंदु अग्रवाल गलगलिया, किशनगंज बिहार
सारस न्यूज, किशनगंज।
खुद को यूँ पाला है मैंने
कल्पनाओं के भवँर में डूब कर
एक मोती निकाला है मैंने,
बीते हुए लम्हों को फिर से
पुकारा है मैंने।
बातें कुछ अधकहि सी थी,
कहानी कुछ अनसुनी सी थी
अपने जीवन के सपनों को
हकीकत में ढाला है मैंने।
लोग अक्सर डर जाते हैं
हवा के हल्के झोकों से,
तूफानों से लड़ कर खुद को
यूँ पाला है मैंने।
आसान नही थे रास्ते
जीवन संघर्ष की राहों के।
हर हादसों से लड़ कर खुद को
हर परिस्थिति में ढाला है मैंने।
लोग परेशान होते हैं
मेरी मुस्कान को देख कर,
उन्हें क्या पता,आती हुई मौत को
कैसे टाला है मैंने।
बिंदु अग्रवाल गलगलिया, किशनगंज बिहार
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