सर्वत्र छायी धुंधलका, और लगती रात अंधारी, मधुशाला में बैठे सब, ये कह रहे थे, ‘नमस्कार, प्यारी।’
चमकती लौ की रातें हैं, जश्न का रंग चढ़ा है, संसार से मुक्त होकर, यह जीवन सज गया है।
सच्चाई की खोज में, कहीं खो गयी है राहें, मधुशाला के प्यालों में, चमक उठीं मय की लहरें।
प्रेमचंद के विचार और उनकी कविताएं समाज के दमन और अमानवीकरण के खिलाफ एक सशक्त आवाज़ हैं। वे अपने साहित्य के माध्यम से समाज में परिवर्तन की कल्पना करते थे और उन्होंने हमेशा समाज के कमजोर वर्ग के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
हसरत, सारस न्यूज़, वेब डेस्क
मधुशाला
सर्वत्र छायी धुंधलका, और लगती रात अंधारी, मधुशाला में बैठे सब, ये कह रहे थे, ‘नमस्कार, प्यारी।’
चमकती लौ की रातें हैं, जश्न का रंग चढ़ा है, संसार से मुक्त होकर, यह जीवन सज गया है।
सच्चाई की खोज में, कहीं खो गयी है राहें, मधुशाला के प्यालों में, चमक उठीं मय की लहरें।
प्रेमचंद के विचार और उनकी कविताएं समाज के दमन और अमानवीकरण के खिलाफ एक सशक्त आवाज़ हैं। वे अपने साहित्य के माध्यम से समाज में परिवर्तन की कल्पना करते थे और उन्होंने हमेशा समाज के कमजोर वर्ग के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
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