पूर्णिया कृषि कालेज को मखाना क्षेत्र में मिली बड़ी उपलब्धि, यहां के मखाना को हासिल हुआ जीआई टैग, मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ के नाम से मिला मखाना का भौगोलिक सूचक।
पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज (बीपीएसएसी) पूर्णिया को मखाना क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई है। कालेज के सहयोग से यहां के मखाना को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिक्शन) हासिल हुआ है। बीपीएसएसी कालेज के तकनीकी मार्गदर्शन में मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ के नाम से मखाना का भौगोलिक सूचक प्राप्त हुआ है। जीआई टैग मिलने से मखाना की ब्रांडिग होगी तथा उत्पादक किसानों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा।
कृषि कालेज पूर्णिया के प्राचार्य डा. पारसनाथ ने बताया कि कृषि सचिव, बिहार सरकार डा. एन श्रवण कुमार एवं निदेशक उद्यान, नंदकिशोर के संयुक्त प्रयास से मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ का गठन किया गया तथा उसके नाम जीआई टैग का प्रमाण-पत्र प्राप्त हुआ है।
मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ की अध्यक्ष विनीता कुमारी ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर निबंधन कराने में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्कालीन कुलपति, डा. अजय कुमार सिंह का काफी सहयोग प्राप्त हुआ है। डा. अजय ने बीपीएसएसी कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. पारस नाथ, प्रधान अन्वेषक, मखाना अनुसंधान परियोजना, डा. अनिल कुमार एवं सहायक प्राध्यापक-सह-कनीय वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) डा. पंकज कुमार यादव को मखाना के जीआई टैग हासिल किए जाने के लिए निर्देशित किया था। इस टीम ने विगत वर्षों से अथक प्रयास कर एक हजार से अधिक पन्नों का मखाना के ऐतिहासिक दस्तावेजों को संग्रहित कर भौगोलिक सूचक (जीआई) निदेशालय, चेन्नई को आवेदन किया था। जिसके बाद इसे यह सफलता हासिल हुई है।
विदित हो कि गुणवत्ता वाले प्रोटीन एवं स्टार्च के कारण मखाना एक उत्तम खाद्य है एवं कई रोगों में गुणकारी होने के कारण इसको आज के आधुनिक जीवन का सुपर फूड कहा जाता है। मखाना की अधिकांश व्यावसायिक खेती उत्तरी बिहार में होती है। भारत में मखाना उत्पादन का कुल 85 प्रतिशत उत्पादन बिहार में होता है जिसमें सबसे अधिक सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल में खेती होती है। कृषि कालेज पूर्णिया द्वारा वर्ष 2012 से लगातार अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण का कार्य विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के परिणाम स्वरूप मखाना में विभिन्न तकनीक एवं किस्म विकसित की गई है, जिसमें मखाना की उन्नतशील प्रजाति सबौर मखाना-1 महत्वपूर्ण है। कृषि कालेज के प्रयास से मखाना को एक व्यवसायिक फसल का दर्जा मिला। कृषि स्नातक छात्रों में उद्यमिता विकास के लिए मखाना आधारित एक्सपेरियंशियल लर्निंग परियोजना चलायी जा रही है ताकि मखाना आधारित उद्यमिता विकास के माध्यम से छात्र-छात्राएं जॉब सीकर न बनकर जॉब क्रीएटर बन सकें।
ज्ञात हो कि यहां का अधिकतर मखाना पैकिग करके देश के अन्य राज्यों में भेजा जाता है जिससे राज्य को राजस्व का भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। साथ ही राज्य से मखाना का सीधे निर्यात नहीं होने के कारण वैश्विक स्तर पर मखाना के उत्पादन एवं प्रसंस्करण के लिए बिहार की पहचान नहीं हो पाती थी। लेकिन अब जियो टैग मिल जाने से विश्व बाजार में दूसरे ब्रांड का मखाना यथा गुजरात मखाना, इन्दौर मखाना, कानपुर मखाना, दिल्ली मखाना आदि का विक्रय नहीं हो पाएगा। अब यहां के किसानों को विपणन में अधिक से अधिक लाभ मिलेगा। राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय बाजारों में मखाना की विशेष ब्रांडिग होगी साथ ही साथ किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति होगी। मखाना विभिन्न पदार्थों जैसे आर्युर्वेदिक दवाएं, स्नैक्स, स्टार्च और कई अन्य उत्पादों का स्त्रोत बन चुका है। इसीलिए यह मानव जाति के लिए शुष्क फलों के रूप में बागवानी फसलों का अत्यन्त आवश्यक अंग हो गया है। संघ के सचिव गणेश महथा ने बताया कि पौराणिक समय से ही मखाना का उत्तरी बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में सामाजिक एवं धार्मिक अनुष्ठानों में एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त है। मखाना एक लोकप्रिय शुष्क फल है, जो आसानी से उगाया जा सकता है। यह विभिन्न शुष्क फलों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह न केवल पौष्टिकता एवं औषधीय गुणों के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम है बल्कि आर्थिक लाभ के कारण साधारण किसानों को खेती के लिए प्रेरित करता है।
सारस न्यूज टीम, पूर्णिया।
पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज (बीपीएसएसी) पूर्णिया को मखाना क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई है। कालेज के सहयोग से यहां के मखाना को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिक्शन) हासिल हुआ है। बीपीएसएसी कालेज के तकनीकी मार्गदर्शन में मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ के नाम से मखाना का भौगोलिक सूचक प्राप्त हुआ है। जीआई टैग मिलने से मखाना की ब्रांडिग होगी तथा उत्पादक किसानों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा।
कृषि कालेज पूर्णिया के प्राचार्य डा. पारसनाथ ने बताया कि कृषि सचिव, बिहार सरकार डा. एन श्रवण कुमार एवं निदेशक उद्यान, नंदकिशोर के संयुक्त प्रयास से मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ का गठन किया गया तथा उसके नाम जीआई टैग का प्रमाण-पत्र प्राप्त हुआ है।
मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ की अध्यक्ष विनीता कुमारी ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर निबंधन कराने में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्कालीन कुलपति, डा. अजय कुमार सिंह का काफी सहयोग प्राप्त हुआ है। डा. अजय ने बीपीएसएसी कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. पारस नाथ, प्रधान अन्वेषक, मखाना अनुसंधान परियोजना, डा. अनिल कुमार एवं सहायक प्राध्यापक-सह-कनीय वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) डा. पंकज कुमार यादव को मखाना के जीआई टैग हासिल किए जाने के लिए निर्देशित किया था। इस टीम ने विगत वर्षों से अथक प्रयास कर एक हजार से अधिक पन्नों का मखाना के ऐतिहासिक दस्तावेजों को संग्रहित कर भौगोलिक सूचक (जीआई) निदेशालय, चेन्नई को आवेदन किया था। जिसके बाद इसे यह सफलता हासिल हुई है।
विदित हो कि गुणवत्ता वाले प्रोटीन एवं स्टार्च के कारण मखाना एक उत्तम खाद्य है एवं कई रोगों में गुणकारी होने के कारण इसको आज के आधुनिक जीवन का सुपर फूड कहा जाता है। मखाना की अधिकांश व्यावसायिक खेती उत्तरी बिहार में होती है। भारत में मखाना उत्पादन का कुल 85 प्रतिशत उत्पादन बिहार में होता है जिसमें सबसे अधिक सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल में खेती होती है। कृषि कालेज पूर्णिया द्वारा वर्ष 2012 से लगातार अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण का कार्य विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के परिणाम स्वरूप मखाना में विभिन्न तकनीक एवं किस्म विकसित की गई है, जिसमें मखाना की उन्नतशील प्रजाति सबौर मखाना-1 महत्वपूर्ण है। कृषि कालेज के प्रयास से मखाना को एक व्यवसायिक फसल का दर्जा मिला। कृषि स्नातक छात्रों में उद्यमिता विकास के लिए मखाना आधारित एक्सपेरियंशियल लर्निंग परियोजना चलायी जा रही है ताकि मखाना आधारित उद्यमिता विकास के माध्यम से छात्र-छात्राएं जॉब सीकर न बनकर जॉब क्रीएटर बन सकें।
ज्ञात हो कि यहां का अधिकतर मखाना पैकिग करके देश के अन्य राज्यों में भेजा जाता है जिससे राज्य को राजस्व का भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। साथ ही राज्य से मखाना का सीधे निर्यात नहीं होने के कारण वैश्विक स्तर पर मखाना के उत्पादन एवं प्रसंस्करण के लिए बिहार की पहचान नहीं हो पाती थी। लेकिन अब जियो टैग मिल जाने से विश्व बाजार में दूसरे ब्रांड का मखाना यथा गुजरात मखाना, इन्दौर मखाना, कानपुर मखाना, दिल्ली मखाना आदि का विक्रय नहीं हो पाएगा। अब यहां के किसानों को विपणन में अधिक से अधिक लाभ मिलेगा। राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय बाजारों में मखाना की विशेष ब्रांडिग होगी साथ ही साथ किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति होगी। मखाना विभिन्न पदार्थों जैसे आर्युर्वेदिक दवाएं, स्नैक्स, स्टार्च और कई अन्य उत्पादों का स्त्रोत बन चुका है। इसीलिए यह मानव जाति के लिए शुष्क फलों के रूप में बागवानी फसलों का अत्यन्त आवश्यक अंग हो गया है। संघ के सचिव गणेश महथा ने बताया कि पौराणिक समय से ही मखाना का उत्तरी बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में सामाजिक एवं धार्मिक अनुष्ठानों में एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त है। मखाना एक लोकप्रिय शुष्क फल है, जो आसानी से उगाया जा सकता है। यह विभिन्न शुष्क फलों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह न केवल पौष्टिकता एवं औषधीय गुणों के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम है बल्कि आर्थिक लाभ के कारण साधारण किसानों को खेती के लिए प्रेरित करता है।
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