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अटूट आस्था का केंद्र है सुहिया का दुर्गा मंदिर।

देवाशीष चटर्जी, सारस न्यूज़, टेढ़ागाछ।

टेढ़ागाछ प्रखंड स्थित ग्रामीण इलाके के पुरानी व प्रसिद्ध सुहिया दुर्गा मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। यहां आने वाले भक्तों की ऐसी आस्था है कि एक बार अगर माँ के दरबार में सच्ची श्रद्धा व आस्था के साथ भक्त पहुँच जाते हैं तो वे स्वत: माँ का स्थाई भक्त बन जाते हैं। यही इस मंदिर की विशेषता है। हर दुखियों की दुख माँ हरती है। जो जिस मनोकामना के साथ पहुँचता है, उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। माँ के इस दरबार में हाजरी लगाने वाले भक्तों पर माँ की विशेष कृपा रहती है। यहाँ पूरी सादगी व विधि विधान के साथ माँ की आराधना व पूजा की जाती है। शारदीय व चैत्र नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इसके अलावे यहाँ प्रतिदिन सुबह-शाम माँ की पूजा व आरती निरंतर की जाती है। जिसमें सुबह-शाम स्थानीय भक्तों की भीड़ जुटती है। शारदीय व चैत नवरात्र में पहले दिन से माँ के मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

आस्था:-

ग्रामीण इलाके में सबसे पहले शुरू हुई थी पूजा आसपास के कई पंचायतों से आते हैं श्रद्धालु। बताया जाता है कि यहाँ आजादी के बाद स्थानीय लोगों ने 1947 में पहली बार मंदिर की स्थापना कर माँ दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी। और 1972 ई० में बैगना स्टेट के राजा हसन मियां ने यहाँ माँ दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया। बताया जाता है कि उस समय फेदु झा नामक पुजारी मंदिर में पूजा करते थे। लेकिन कुछ वर्षों के बाद यह मंदिर रेतुआ नदी के कटाव के चपेट में आ गयी, फिर स्थानीय ग्रामीणों ने पुनः माँ दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया और आज तक यहाँ सालों भर नित्य दिन पूजा-अर्चना, स्तुति-विनति, संध्या आरती होती है। माँ की आराधना टेढ़ागाछ प्रखंड की प्रसिद्ध सुहिया दुर्गा मंदिर कमेटी करती है। इस मंदिर में माँ की पूजा प्रतिमा, लाइटिंग आदि कार्य के लिए सामाजिक सहयोग से कमेटी द्वारा पूजा का खर्च की जाती है। मंदिर के व्यवस्थापक की मानें तो यहां पूरी सादगी व विधि विधान के साथ पुराने परंपरा के अनुसार मां की पूजा होती चली आ रही है। हाल के दिनों में पूजा आधुनिक तरीके से करने पर भी जोर दिया गया है। बताते चले कि नवमी एवं दशमी को भव्य मेला का आयोजन होता है।

अष्टमी व नवमी को उमड़ती है भीड़:-

नवरात्र के अष्टमी व नवमी को माँ के दरबार में हाजरी लगाने के लिए अहले सुबह से ही भक्तों की भीड़ जुटने लगती है। सुबह के 7 व 10 के बीच भक्तों का तांता लग जाता है। 2 दिनों तक मंदिर में ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है। पहले दिन से ही माँ के दर्शन के लिए पट खुल जाते हैं। यहां हर वर्ष के अष्टमी को भी माँ का भव्य दरबार सजाया जाता है।

75 वर्ष पुराना है मंदिर का इतिहास:-

ग्रामीण इलाके में सबसे पहले सुहिया दुर्गा मंदिर में पूजा शुरू हुई थी। मौजूदा वक्त में भी इस मंदिर के प्रति लोगों की अलग व अटूट आस्था है। 1947 में स्थानीय लोगों की ओर से दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई थी। इस दौरान बलदेब साह द्वारा पूजा की शुरुआत की गई थी। वर्ष 1980 के दशक में सुहिया हाट स्थित दुर्गा मंदिर का पुनः निर्माण किया गया। जिसका जीर्णोद्धार हुआ है। वर्तमान समय में पूजा समिति इस मंदिर में विधिपूर्वक पूजा कराने के प्रति लग्न और निष्ठा के साथ समर्पित हैं।

इस दौरान पुजारी विनोद यादव, पंडित शंकर ठाकुर व समिति से सदस्य अनिरुद प्रसाद साह, रंजीत कुमार साह, मानिक कुमार माझी, तरुण कुमार साह, दीपेश कुमार साह, अनिल कुमार साह, संजय कुमार साह, झड़ी लाल साह, चमनलाल साह, सागर सहनी, जगदीश प्रसाद साह, राम जी साह, सुनील कुमार साह, बजरंग कुमार साह, गुड्डू कुमार साह, शंभू साहनी, उमेश कुमार साह, अर्जुन साहनी, अनिल कुमार साह ने माँ दुर्गा मंदिर में पूजा को सफलतापर्वक संपन्न कराने को लेकर जूट हुए हैं।

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