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ठाकुरगंज प्रखंड सहित नगर क्षेत्र में दीपावली के साथ लोगों ने धूमधाम से मनाई काली पूजा।

सारस न्यूज, किशनगंज।

ठाकुरगंज प्रखंड सहित नगर क्षेत्र में दीपावली के साथ लोगों ने धूमधाम से काली पूजा भी मनाई। इस मौके पर जहां श्रद्धालुओं ने अपने घरों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की, वहीं सोमवार की देर रात मां काली की पूजा कर सुख समृद्धि की कामना की। इस दौरान देर रात कर पूजा पंडालों एवं स्थायी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ दिखी। नगर के रेल गेट स्थित श्री श्री सिद्धपीठ काली मंदिर, कलकतिया फॉर्म, क्लब ग्राउंड के समीप शीतला मंदिर में, गांधीनगर में नवनिर्मित काली मंदिर में, ढीबड़ीपाड़ा में स्थित शीतला मंदिर सहित अनेक मंदिरों में तथा न्यू कॉलोनी, रेलवे अभियंता प्रभाग परिसर, ट्राफिक पूजा समिति सहित अनेक पंडालों में मां काली की पूजा अर्चना की गई।

आकर्षक ढंग से सजे ठाकुरगंज रेलवे स्टेशन के समीप रेल गेट पर स्थित श्री श्री सिद्धपीठ काली मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु देर रात तक जुटे रहे। बंगाली पारंपरिक रीति रिवाज से पूरे विधि विधान से यहां भक्त मां की आराधना करते दिखे। वहीं इस बार मंदिर में सादा बलि चढ़ाई गई। इस मंदिर में पारंपरिक विधि से पूजा करने की परंपरा है। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को निशा रात्रि में मां काली का आह्वान किया जाता है। मंदिर में स्थाई रूप से कोलकाता से लाई गई मां की प्रतिमा स्थापित हैं। रातभर होनेवाले इस पूजा के दौरान मान्यता यह है कि जो भी श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं उन्हें मनोवांछित फल मिलता है।
मंदिर के पुरोहित मुन्ना पांडे बताते हैं कि वैसे तो सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं का आराधना करने का खास महत्व है। मगर मां काली की पूजा अन्य देवी देवताओं से अलग ही महत्व रखता है। पौराणिक कथाओं में मां काली की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता यह है कि मां काली ने चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ नाम के दैत्यों के अत्याचार से मुक्ति के लिए मां अंबे ने चंडी का रूप धारण कर इन राक्षसों को मार गिराया। उनमें से एक रक्तबीज नाम का राक्षस भी था, जिसके शरीर का एक भी बूंद जमीन पर पड़ने से उसी का एक दूसरा रूप पैदा हो जाता। रक्तबीज का अंत करने के लिए मां काली ने उसे मार कर उसके रक्त का पान कर लिया और रक्तबीज का अंत हो गया। राक्षसों का अंत करने के बाद भी देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब सृष्टि के सभी लोग घबरा गए कि यदि मां का क्रोध शांत नहीं हुआ तो दुनिया खत्म हो जाएगी। ऐसे में भगवान शिव मां काली को शांत करने के लिए जमीन पर लेट गए और माता का पैर जैसे ही शिव भगवान पर पड़ा उनकी जीभ बाहर निकल आई और वे बिल्कुल शांत हो गई। तब से काली पूजा की परंपरा शुरू हो गई। भक्त आज भी मां को उसी रूप में पूजते हैं और उनकी प्रतिमाओं में मां काली की जीभ बाहर की ओर निकली दिखती है।

वहीं श्री श्री सिद्धपीठ काली मंदिर सहित अन्य मंदिरों व पूजा पंडालों में पूजा अर्चना को सफल बनाने में ताराचंद धानुका, नरेश ठाकुर, सुजीत कुमार अधिकारी, मोहीतोष राहा, बाबुल दे, दीनानाथ पाण्डेय, सुभाष घोष, अखिल साहा, मुकेश गुप्ता आदि सहित अन्य सदस्यों ने महत्ती भूमिका निभाई। इस दौरान शांति पूर्ण तरीके से पूजा आयोजन में बीडीओ सुमित कुमार, थानाध्यक्ष सतीश कुमार हिमांशु, पुअनि उमेश कुमार, सअनि बिपिन कुमार, विनोद कुमार, विजय कुमार सिंह आदि सहित प्रखंड सह अंचल प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन ने पूरी रात गश्त करते दिखे गए।

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