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बिंदु अग्रवाल की कविता # 2 (कभी सोचना)

बिंदु अग्रवाल

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगालिया।

कभी रात के अंधेरे में अकेले
बैठ कर सोचना,
आज तुमने कितनों को खुशी दी है?
कितने आहत हुये हैं तुम्हारी बातों से?

कितनों के होठों पे मुस्कान
तुम्हारी वजह से आई?
कितनों को तुमने अपनी
वाणी से चोट पहुँचाई?

कभी सोचना, कहीं कोई है?
जो तुम्हारी वजह से सो न सका,
दिल तड़पा मग़र आँखों से
रो न सका।

कितनों को तुमने अपनी
दुआओं में शामिल किया?

कितनों को तुमने अपने
प्रेम से हासिल किया?

क्या कहीं कोई है? जो
तुम्हारे लिये फ़रियाद करता है?
आज भी तुम्हारे उपकार को
याद करता है।

अगर हाँ? तो सही मायने में
तुम इंसान हो।
इस मतलबी दुनियां में
मानवता की पहचान हो।

       बिंदु अग्रवाल
मध्य विद्यालय गलगलिया

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