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बिंदु अग्रवाल की कविता # 4 (सफर जिंदगी का।)

बिंदु अग्रवाल

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

सफर जिंदगी का

दिल के असाध्य रोग सा, दिल में मेरे पलता रहा।
पीकर लहू मेरा, मुझे ही छलता रहा।।

शाम सी ढलती रही हर ख्वाहिशें।
दिल मेरा दीये सा यूँ, जलता रहा।।

चाँद बैठा था गगन सा दूर मेरा।
पर, मन चकोर मिलने को मचलता रहा।।

दौर चल रहा जफ़ाओं का मग़र।
बेवफ़ाओं से दिल वफ़ा करता रहा।।

खवाबों में चिंगारिया कुछ यूँ लगी।
निर्धुम-अग्नि-कुंड से जलता रहा।

यादों के जखम बन गये नासूर अब।
दर्द पलकों से मेरे ढलता रहा।।

चिताएं जल रही अरमानों की मग़र।
तन बेबस करवटें बदलता रहा।

डूब ना जाएं कश्तियाँ मझधार में।
तूफानों से साहिल यूँ लड़ता रहा।।

मुश्किलें आती रही रही में मग़र।
“सफ़र जिंदगी का” था चलता रहा।।

बिंदु अग्रवाल
गलगलिया, किशनगंज
बिहार

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