सारस न्यूज, गलगलिया।
वर दे वीणावादिनी वर दे वीणावादिनी जय माँ तू हंसवाहिनी हृदय तिमिर को मिटा तू ज्योत ज्ञान की जला। अज्ञानता की कालिमा का अब ना अट्टहास हो, दैदिप्यमान हो धरा प्रकाश ही प्रकाश हो। धर्म मार्ग पे चलें अधर्म का न वास् हो, हर लोभ पाप को मिटा हर हृदय तुम्हारा वास् हो। नीव प्रेम की रखे जब देह का निर्माण हो, नव गीत हो,नव ताल हो हर साँस गुंजायमान हो। भोग विलास को मिटा योग का आव्हान हो, सुशोभित हो वसुंधरा भारत भूमि महान हो। दिब्य ज्योत ज्ञान की जले माँ रात-दिन यहॉं ज्ञान के प्रकाश से चमक उठे वसुंधरा। बिंदु अग्रवाल